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________________ जुहो! जुहो! जुहो! तुम्हें साथ देंगे, शास्त्र तुम्हारे साक्षी बन जाएंगे। ___अभी तो तुम गीता पढ़ोगे, तो गीता पढ़ोगे कैसे? तुम गीता में से अपने अर्थ निकालोगे। वे अर्थ सब गलत होंगे। तुम एक बार अपने भीतर के गीत को सुनो, तुम्हारे भीतर प्रभु का गीत पहले जन्म ले, तुम्हारे भीतर कृष्ण पहले बोलें, फिर तुम गीता पढ़ना। तब तुम जानोगे कि सच कहा है, ठीक कहा है, वही कहा है जो तुमने भीतर सुना है। लेकिन तुम पहले सुनना, फिर गीता तुम्हारी साक्षी हो जाएगी। . और फिर एक अपूर्व घटना घटती है—गीता ही साक्षी नहीं होगी, कुरान भी तुम्हारा साक्षी होगा और बाइबिल भी तुम्हारी साक्षी होगी। जिसने ध्यान से जीवन के सत्य को समझा है, उसके लिए सभी शास्त्र गवाही हो जाते हैं, एक साथ गवाही हो जाते हैं, उनमें फिर कोई विरोध नहीं होता। फिर हिंदू का कि मुसलमान का, ईसाई का कुछ अंतर नहीं होता। लेकिन अगर तुमने भीतर का सत्य नहीं सुना, नहीं देखा, अपनी भीतर की किताब नहीं पढ़ी, असली किताब नहीं पढ़ी, उसके पन्ने बिना उलटे पड़े हैं और तुम पढ़ लिए गीता, तो हिंदु बन जाओगे, धार्मिक नहीं; पढ़ लिए कुरान तो मुसलमान बन जाओगे, धार्मिक नहीं। और धार्मिक होना बड़ी और बात है, मुसलमान होना बड़ी और बात है। मुसलमानों से छुटकारा चाहिए, हिंदुओं से छुटकारा चाहिए, जैनों और बौद्धों से छुटकारा चाहिए। दुनिया में ईसाई और पारसी न हों तो दुनिया बेहतर होगी। दुनिया में धार्मिक आदमी चाहिए। ___ धार्मिक आदमी बड़ी और ही बात है। धार्मिक आदमी का मन संकीर्ण नहीं होता, सांप्रदायिक नहीं होता। जिसने सत्य को जाना वह सांप्रदायिक होना भी चाहे तो कैसे होगा? सत्य इतना विराट है कि सत्य में सब समाहित है। सत्य इतना बड़ा है कि विरोधाभास भी वहां लीन हो जाते हैं और संगम बन जाता है। वहां कुरान और गीता में फिर कोई विरोध नहीं रह जाता, सिर्फ भाषा का भेद रह जाता है, अभिव्यक्ति के अंतर रह जाते हैं। . कृष्ण का अपना कहने का ढंग है, अपनी शैली है; मोहम्मद का अपना ढंग है, अपनी शैली है और दोनों शैलियां प्यारी हैं और अनूठी। बस शैली का भेद है, भाषा का भेद है। कृष्ण संस्कृत में बोले हैं, मोहम्मद अरबी में बोले हैं, बस इतना ही भेद है। तो स्वभावतः कृष्ण ईश्वर की बात करते हैं और मोहम्मद अल्लाह की, मगर जिसकी वे बात करते हैं वह एक ही।। अब आम को आम कहो कि मैंगो, क्या फर्क पड़ता है? आम आम है। लेकिन जिसने आम का स्वाद न लिया हो, उसे फर्क पड़ सकता है। जिसने आम न देखा हो, उसे फर्क पड़ सकता है। वह कहेगा, एक आदमी आम चाहता है, दूसरा आदमी मैंगो चाहता है। ये दोनों में बड़ा विरोध है। झगड़ा भी हो सकता है। लेकिन जिसने आम का स्वाद लिया है, वह कहेगा, ये दोनों एक ही बात चाहते हैं, एक ही चीज 173
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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