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एस धम्मो सनंतनो
दसरा आर्य-सत्य है कि दुख का कारण है। दुख है, इतने से क्या होगा? अगर दुख अकारण हो तो फिर कुछ भी नहीं किया जा सकता, फिर हम अपंग हो गए, असहाय हो गए। कोई चीज अकारण होती हो तो फिर कुछ भी नहीं किया जा सकता; फिर क्या करोगे? लेकिन अगर कारण हो तो कारण बदला जा सकता है।
समझो कि तुम्हारे सिर में दर्द है, क्योंकि तुम कुछ भोजन लेते रहे हो जो कि सिरदर्द पैदा करता है, तो उस भोजन को लेना बंद किया जा सकता है। तुम्हारे सिर में दर्द है, क्योंकि रात तुम बिना तकिए के सोते रहे हो, अगर इसका पता चल जाए तो तकिए के साथ सो सकते हो, सिर का दर्द मिट सकता है। तुम्हारे सिर में दर्द है, तो कारण खोजना होगा। कारण अगर न हो, तो फिर सिरदर्द नहीं मिटाया जा सकता, फिर कोई उपाय नहीं है। यह बड़ी वैज्ञानिक खोज है बुद्ध की कि दुख है, इतने से क्या होगा? दुख का कारण है।
और यही तो मार्क्स कहता है। मार्क्स कहता है, आदमी गरीब हैं, क्योंकि गरीबी का कारण है, शोषण चल रहा है। यही फ्रायड कहता है, कि लोग दुखी हैं, विक्षिप्त हैं, पागल हो रहे हैं, रुग्ण हैं, चित्त से स्वस्थ नहीं हैं, कारण है। कारण है चित्त की स्वाभाविकताओं का दमन, रिप्रेशन। कारण पकड़ में आ जाए तो बस, हम ठीक रास्ते पर चल पड़े। यह बुद्ध का दूसरा आर्य-सत्य है। इसकी वैज्ञानिकता बड़ी साफ है।
तुम जब चिकित्सक के पास जाते हो तो वह यही तो पूछता है, क्या तकलीफ है? पहले पूछता है, क्या दुख है ? फिर जब दुख का पता चल जाता है तो वह फिर तुम्हारी जांच-परख करता है, निदान करता है। निदान यानी कारण, कि क्या कारण? अगर कारण ठीक-ठीक पकड़ में आ गया तो इलाज करीब-करीब हो ही गया, पचास प्रतिशत तो हो ही गया। इसलिए ठीक निदान पा लेना, इलाज आधे के करीब पूरा कर लेना है। ___ इसीलिए तो तुम जब किसी डाक्टर के पास जाते हो जो न दवा देगा, न इलाज करेगा खुद, लेकिन सिर्फ डायग्नोसिस करेगा, सिर्फ निदान करेगा, उसकी फीस सबसे ज्यादा होती है। दवा देने वाले की तो कोई फीस ही नहीं होती-कंपाउंडर दे देता है, कि केमिस्ट दे देता है, उसकी कोई फीस थोड़े ही होती है। एक दफा निदान हो गया कि यह रही बीमारी और ये रहे कारण, फिर तो बात सरल है। फिर तो अड़चन नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात है निदान।
तो बुद्ध जब कहते हैं कि दुख है, दुख का कारण है, तो वह निदान कह रहे हैं। वे कह रहे हैं। पहले निदान कर लो। मार्क्स ने निदान किया कि समाज में इतनी दरिद्रता, दीनता, पीड़ा सदियों से रही है, क्योंकि शोषण है। अगर यह निदान गलत हो तो इलाज न हो सकेगा। दूसरों ने भी निदान किए थे, लेकिन गलत थे।
धार्मिक लोग कहते रहे हैं आदमी से कि आदमी गरीब है, क्योंकि पिछले जन्मों में पाप किया है। यह झूठा निदान है। यह निदान सच्चा नहीं है। इस निदान के कारण
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