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________________ जुहो! जुहो! जुहो! का प्रयोग किया है। बुद्ध के चार आर्य-सत्य दोहरा दूं, फिर इन दोनों से संबंध जुड़ना आसान हो जाएगा। बुद्ध ने कहा, पहली बात तो यह जानना जरूरी है कि दुख है। क्योंकि बहुत लोग ऐसे हैं जिन्हें यही पता नहीं कि दुख है। मानकर बैठे हैं कि यही जीवन है। जब यही जीवन है, तो फिर दुख क्या मानना। ऐसा समझो कि एक आदमी पैदा हुआ और पैदा होने के साथ ही उसके सिर में दर्द रहा है-तीस साल हो गए पैदा हुए उसे, सिर में दर्द पहले दिन से ही रहा है, चौबीस घंटे रहा है उसे पता ही नहीं चलेगा कि सिर में दर्द है। और जब उसे पता ही न चलेगा कि सिर में दर्द है, तो वह चिकित्सा क्यों खोजेगा! चिकित्सक क्यों खोजेगा! औषधि क्यों खोजेगा! तो पहली तो बात यह है कि किसी भी दुख से छुटकारे के लिए कि दुख है, इसकी बहुत प्रगाढ़ भावना होनी चाहिए। इसका बहुत स्पष्ट बोध होना चाहिए। मार्क्स ने कहा कि दुनियाभर में इतना दुख है, इतनी पीड़ा है, इतनी दरिद्रता है, इतना शोषण है, लेकिन लोगों को पता ही नहीं। गरीब मानकर चलता है कि गरीब होना ही मेरा भाग्य है। उसे इस बात का बोध नहीं है कि मैं दुखी हूं और यह मेरा भाग्य नहीं है, इसका इलाज हो सकता है। तो मार्क्स ने बुद्ध के चार आर्य-सत्यों में पहला आर्य-सत्य-दुख है-इसका प्रयोग सामाजिक तल पर किया। और उसने कहा कि दरिद्र को, दीन को, सर्वहारा को बोध होना चाहिए कि मैं दखी हैं। जिस दिन गरीब को यह पीड़ा साफ हो जाएगी कि मैं दुखी हूं और दुखी होना भाग्य नहीं हो सकता; स्वास्थ्य स्वभाव है, दुखी होना विकृति है, दुर्घटना है; तो जरूर कहीं कुछ गड़बड़ हो रही है, जो कि ठीक की जा सकती है। तो पहली बात कि दुख है, इसका स्पष्ट बोध हो। ठीक यही बात फ्रायड ने कही मनोविज्ञान के संबंध में। बहुत लोग विक्षिप्त अवस्था में हैं, लेकिन मनोवैज्ञानिक के पास नहीं जाते, क्योंकि उन्हें स्मरण ही नहीं है कि वे दुखी हैं। बहुत लोग दुखी हैं, लेकिन कभी तलाश नहीं करते। उन्होंने मान ही लिया कि यही जीवन है, ऐसा ही जीवन है, और कैसा जीवन होता है ! यही रोज की आपाधापी, यही उठना-बैठना, सो जाना, यही कलह, यही प्रेम, यही जीवन है। इससे अन्यथा जीवन हो सकता है, इसका सपना भी उनके भीतर नहीं उठा, तुलना भी पैदा नहीं हुई। तो फ्रायड भी कहता है कि किसी व्यक्ति की मनोचिकित्सा तभी हो सकती है जब उसे यह स्पष्ट हो जाए कि मेरे चित्त की जो दशा है, जैसी होनी चाहिए वैसी नहीं है; कुछ विकृत है, कुछ गड़बड़ हो गया है। तो ही तो चिकित्सा खोजी जाती है। दोनों ने बुद्ध के पहले आर्य-सत्य का उपयोग किया है, चाहे उन्हें पता हो, चाहे उन्हें पता न हो। 163
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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