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एस धम्मो सनंतनो
इस पूंजी में पूंजी नहीं है। तो घड़ी दो घड़ी असली पूंजी की तलाश में लगाओ। तेईस घंटा दे दो व्यर्थ को, एक घंटा तो सार्थक को दो । एक घंटा तो मरूद्यान में जीओ। तेईस घंटे भटकते रहो मरुस्थल में, मगर एक घंटा तो मरूद्यान में जीओ, एक घंटा तो डुबकी लगाओ भीतर ।
इतना भी अगर हो जाए तो जल्दी ही तुम पाओगे वह एक घंटा जीत गया और तेईस घंटे हार गए। वह एक घंटा इतना बलशाली है, उसमें ऐसे स्वर फूटेंगे, ऐसी प्रकाश की किरणें उपलब्ध होंगी कि तुम अचानक पाओगे - छोटी-छोटी किरणों ने तुम्हारे जीवन को बदलना शुरू कर दिया, तुम सूरज की यात्रा पर निकल पड़े, तुम्हारे पंख लग गए, तुम उड़ने लगे किसी और यात्रा पर ।
तुम पूछते हो, 'मैं क्या करूं ?”
मैं कहता हूं, ध्यान करो, प्रेम करो। दो शब्द याद रखो - भीतर ध्यान, बाहर प्रेम, बस सब हो जाएगा। जब अकेले रहो तो ध्यान में डूब जाओ, तब ऐसे अकेले हो जाओ कि भूल ही जाओ कि संसार है, आंख बंद हो जाएं, विचारों को छोड़ दो; चलते भी हों तो चलते रहें, लेकिन तुम उनसे पृथक हो जाओ, अलग हो जाओ, तुम अपना तादात्म्य छोड़ दो। चलते हों चलते रहें, जैसे रास्ते पर भीड़ चलती है। शोरगुल चलता है, चलने दो, लेकिन तुम अब उनके साथ अपने को जोड़ो मत। तुम धीरे-धीरे विलग होकर दूर खड़े हो जाओ। तुम अपने साक्षीभाव में जीओ। और जब कोई पास हो, तब प्रेम बहाओ । जब अकेले, तब ध्यान में डुबकी लगाओ; और जब कोई पास हो तो प्रेम बहाओ ।
अगर तुमने ये दो बातें सम्हाल लीं तो मिलेगी पूंजी, निश्चित मिलेगी। पद भी मिलेगा, प्रतिष्ठा भी मिलेगी, क्योंकि परमात्मा मिलेगा।
दूसरा प्रश्न :
क्या बुद्ध के चार आर्य सत्य वैज्ञानिक हैं?
निश्चित ही । इसमें रत्तीभर संदेह नहीं । बुद्ध की पकड़ बड़ी वैज्ञानिक है । वैज्ञानिकता को समझना हो तो इस तरह समझो -
मार्क्स को तो तुम वैज्ञानिक कहते हो न ! मार्क्स को तो कम्युनिस्ट कहते हैं, दुनिया का सबसे बड़ा वैज्ञानिक । समाजशास्त्र के संबंध में सबसे प्रगाढ़ विश्लेषक, सबसे गहरी इसकी पैठ है । और फ्रायड को तो तुम वैज्ञानिक कहते हो न ! सारी दुनिया कहती है कि मन के संबंध में ऐसी पहुंच, ऐसी पकड़ और किसी की कभी नहीं थी। लेकिन तुम जानकर यह हैरान होओगे कि दोनों ने बुद्ध के चार आर्य सत्यों
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