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________________ जुहो! जुहो! जुहो! भेद न रहा। जब तक जागते रहे, हम प्रभु-स्मरण करते रहे, तुम चिंताओं में डूबे रहे होओगे। कुछ आप जैसी, कुछ आपसे बेहतर। नींद में जब पड़ गए गहरी, तो आप जैसी; और जब तक जागते रहे, तब हम प्रभु-स्मरण में डूबे रहे, तुम चिंताओं में डबे रहे होओगे, व्यर्थ के ठीकरे गिनते रहे होओगे। इसलिए कहता हूं कि कुछ आप जैसी, कुछ आपसे बेहतर। अगर तुम्हें पूंजी, पद और प्रतिष्ठा की सच में तलाश हो, तो ध्यान खोजो, प्रेम खोजो। प्रेम के सिक्के ही तुम्हारे जीवन को धन से भरेंगे, ध्यान के सिक्के ही तुम्हारे जीवन में सुरभि लाएंगे। और तब शांति अपने आप आती है। जैसे दीए के जलने पर प्रकाश हो जाता है, अंधेरा चला जाता है, ऐसे ध्यान के जलने पर अशांति का अंधेरा अपने से चला जाता है। तुमने अब तक जो किया है, गलत ही किया है। अभी भी देर नहीं हो गयी है। कुछ किया जा सकता है। एक क्षण में भी क्रांति हो सकती है। मगर पहली बात, इन चीजों को अब तुम पूंजी कहना बंद करो। अगर तुम इनको पूंजी कहे चले गए तो इसी कहने के कारण इन्हीं में ग्रसित रहोगे। इसलिए मैं जोर देकर कह रहा हूं कि इसे अब पद मत कहो, प्रतिष्ठा मत कहो, पूंजी मत कहो; जिससे कुछ भी नहीं मिला, इसे अब तो पूंजी जैसे सुंदर शब्द देने बंद करो। ___हम जो कहते हैं, उसका परिणाम होता है। हम जो शब्द देते हैं, उसके कारण हमारे जीवन में धाराएं पैदा होती हैं। अगर तुम इसे पूंजी कहोगे तो पकड़ोगे। तुम अगर कहने लगे, यह सब असार है, कूड़ा-करकट है, तो मुट्ठी खुलने लगेगी। शब्दों का बड़ा बल है। छोटे-छोटे शब्दों के भेद बड़े भेद ले आते हैं। ___ तो मैं तुमसे प्रार्थना करता हूं, अब इसे तुम पूंजी मत कहो, पद मत कहो, प्रतिष्ठा मत कहो। तुम्हारे जीवनभर के अनुभव ने प्रमाणित कर दिया है कि यह पूंजी नहीं है, पद नहीं है, प्रतिष्ठा नहीं है। जिससे दुख ही मिला, चिंता ही मिली, अशांति ही मिली, जिससे विक्षिप्तता मिली, उसे ऐसे सुंदर नाम मत दो। परमात्मा को पूंजी कहो, परमात्मा को पद कहो, परमात्मा में प्रतिष्ठा खोजो। ___मगर यह तभी संभव है जब तुम यहां खोज बंद कर दो। क्योंकि तुम खोजने वाले अकेले हो। अगर तुम संसार में ही खोजते चले गए, तो संसार का कोई अंत नहीं है। एक वासना से दूसरी वासना पैदा हो जाती है। एक वासना से दूसरी वासना का सिलसिला पैदा होता चला जाता है। यह अंतहीन श्रृंखला है। इसमें तुम जाकर कहीं भी कुछ न पाओगे। जितने भागोगे, उतने ही गहरे मरुस्थल में पहुंच जाओगे। और जितने इसमें गए उतना ही लौटना पड़ेगा, याद रखना। और लौटना कष्टपूर्ण होगा। जाते तो उत्साह से हो, लौटने में बड़ा विषाद होगा। इसलिए जहां हो वहीं ठहर जाओ। और मैं तुमसे यह भी नहीं कहता कि संसार से भाग जाओ। इतना ही कहता हूं, जाग जाओ। 161
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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