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________________ एस धम्मो सनंतनो है जिसका कोई बोझ नहीं होता। शरीर की पूंजी बोझ देती है, आत्मा की पूंजी कोई बोझ नहीं देती। तो तुम कहते हो, 'मेरे पास सब है, लेकिन शांति नहीं।' जिसको तुम सब कह रहे हो, इसके कारण ही अशांति है। शांति तो दूर, इसके कारण ही अशांति है। और जिसको तुम पूंजी कहते, पद कहते, प्रतिष्ठा कहते, इसी के कारण तुम दुखी हो। सुख तो बहुत दूर, सुख की तो बात ही छोड़ो, इससे तो दुख ही दुख पैदा हुआ है। कांटे ही कांटे पैदा हुए हैं। संताप और चिंताएं। ___एक सम्राट ने एक रात अपने नगर का परिभ्रमण करते हुए एक भिखारी को-पूरे चांद की रात थी—एक वृक्ष के नीचे आनंद से अपने भिक्षापात्र को बजाकर और गीत गाते देखा। वह बहुत चकित हुआ। इसके पास कुछ भी न था। किस बात का गीत! और सम्राट के पास सब था और गीत उसके ओंठों पर आते ही नहीं। कब के भूल गए हैं। नाच उसके पैरों में उठता ही नहीं, कब का विस्मरण हो गया है। हृदय सूख गया, रसधार बहती नहीं। इसके पास क्या है जिसके कारण यह गीत गुनगुना रहा है? सम्राट ने घोड़ा रोक दिया; उसके गीत में कुछ जादू था। उस स्वरलहरी में कुछ मिठास थी जो इस पृथ्वी की नहीं। जो कहीं दूर से आती मालूम होती थी। उसमें एक मस्ती थी, उसके आसपास एक तरंग थी। वह रुक गया। थोड़ी देर को भूल ही गया अपना राजा होना, अपनी चिंताएं, अपनी परेशानियां। जब गीत रुका तो चौंका। उसने उस भिखारी से पूछा, तेरे पास क्या है जिसके कारण तू गीत गुनगुना रहा है? क्या है तेरे पास जिसके कारण तू चिंतित नहीं है? क्या है तेरे पास जिसके कारण तू मस्त है इस चांद की रात में? क्या है तेरे पास जिसके कारण मैं तेरे प्रति ईर्ष्या से भर गया हूं? तूने मुझे जलन से भर दिया है। बड़े सम्राटों को देखकर भी मेरे भीतर कोई जलन नहीं पैदा होती, क्योंकि सब जो उनके पास है मेरे पास भी है, थोड़ा-बहुत कम-ज्यादा होगा, कुछ फर्क पड़ता नहीं। मगर तेरे पास क्या है कि मैं ठिठक गया हूं? मैं आगे न बढ़ सका। वह भिखारी हंसने लगा। उसने कहा, दिखा सकू, ऐसा मेरे पास कुछ भी नहीं है। लेकिन गा सकं, ऐसा मेरे पास बहुत कुछ है। दिखा सकं, ऐसा मेरे पास कछ भी नहीं है। लेकिन गुनगुना सकू, ऐसा मेरे पास बहुत कुछ है। मुझे देखो, पूछो मत। प्रश्न का उत्तर मैं न दे सकूँगा, मेरी आंखों में देखो। सम्राट उससे इतना प्रभावित था कि उसे महल में ले आया। उसे सुला दिया और कहा कि सुबह बात करेंगे। ___ सुबह जब उठे तो सम्राट ने शिष्टाचारवश उससे पूछा कि रात कैसी बीती? उसने कहा, कुछ आप जैसी, कुछ आपसे बेहतर। सम्राट थोड़ा हैरान हुआ, उसने कहा, मतलब मैं समझा नहीं। कुछ आप जैसी, कुछ आपसे बेहतर–क्या मतलब तुम्हारा? उसने कहा, जब सो गए, जब गहरी नींद में खो गए तो आप जैसी; कोई 160
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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