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________________ जुहो! जुहो! जुहो! गरीब आदमी गरीब ही रहा। और इस निदान को मानने वाले गरीब ही रहेंगे, क्योंकि यह निदान ही झूठा है। इससे कुछ संबंध ही नहीं है जीवन के यथार्थ का। आदमी गरीब है, क्योंकि उसे गरीब रखने का एक पूरा षड़यंत्र है। आदमी गरीब है, क्योंकि वह कमाए, इसके पहले उसके पास से खींच लिया जाता है। आदमी कुछ पैदा करे, इसके पहले ही उसकी जेब कट जाती है। और जेब कटने के इतने सूक्ष्म आयोजन हैं कि उसे पता भी नहीं चलता। और इतने सदियों से चल रहा है कि उसे होश भी नहीं आता कि यह चल रहा है। और जिनके हाथ में संपत्ति है, जिनके हाथ में बल है, स्वभावतः वे तो समझाएंगे कि हम क्या कर सकते हैं; पिछले जन्मों के पापों के कारण तुम दुख भोग रहे हो। ___ अब मजा समझना। पिछले जन्मों का अगर पाप कारण है, तो अब तो कुछ किया नहीं जा सकता, भोगना ही पड़ेगा। क्योंकि पिछले जन्म तो हो चुके, हो चुके सो हो चुके, अब उनको बदला नहीं जा सकता। अब तो इतना ही हो सकता है-आगे की सम्हाल लो। अगले जन्म को सम्हाल लो। तो अब कुछ ऐसी भूल-चूक मत करना कि अगले जन्म में गरीब हो जाओ। न पीछे जन्म का कुछ पता है, न अगले जन्म का कुछ पता है। और जिनके पास धन है, स्वभावतः वे कहते हैं, हम पिछले जन्मों के पुण्यों का फल भोग रहे हैं। हालत उलटी है। जिनके पास धन है, वे इसी जन्म के पापों का फल भोग रहे हैं। और जिनके पास धन नहीं है, वे शायद इसी जन्म के पुण्यों का फल भोग रहे हैं। भले आदमी चूसे जा रहे हैं, बुरे आदमी छाती पर सवार हो जाते हैं। छाती पर बैठने के लिए बुरा आदमी होना जरूरी है, नहीं तो छाती पर बैठ ही न सकोगे। तो राजा हैं, महाराजा हैं, धनपति हैं, शोषण का बड़ा जाल फैलाया है। और उस जाल में जो सबसे बड़ा उपयोगी आदमी था, वह था पुरोहित, पंडित, पुजारी। क्योंकि उसने लोगों को जहर दिया। उसने लोगों को कहा कि क्या करोगे, तुम गरीब इसलिए हो कि तुमने पिछले जन्म में पाप किए, अब मत करना। अब तो शांत रहो, भले रहो, शुद्ध आचरण करो; और जो हो रहा है उसको झेलो। भाग्य है, अब कुछ किया नहीं जा सकता। इसको दंड मानकर स्वीकार करो। ___ यह अब तक का निदान था, यह झूठा निदान है। यह निदान वैसा ही झूठा है जैसे किसी आदमी का तो दिमाग खराब हो गया और तुम कहते हो, भूत लगा है; चलो किसी झाड़ की पूजा करो, किसी ओझा के चरण दबाओ। इसका दिमाग खराब हुआ है, तुम कहते हो, भूत लगा है, यह जैसा झूठा निदान है, ऐसा ही झूठा निदान यह कर्म का सिद्धांत था। इसने शोषण को खूब सहारा दिया। मार्क्स ने ठीक-ठीक निदान पकड़ा। उसने पकड़ा-कारण यह नहीं है। कारण यह है कि शोषण का एक जाल है। मगर इस पूरी प्रक्रिया में बुद्ध के चार आर्य-सत्यों का दूसरा हिस्सा काम में लाया जा रहा है। 165
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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