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सौंदर्य तो है अंतर्मार्ग में
जिद्द के कारण संन्यास ले रहा है। अहंकार को एक चोट लग गयी है, बाप कहता है, नहीं लेना। बाप भी जिद्दी है। ठीक बाप का ही बेटा है, उन्हीं का बेटा है, उन्हीं जैसा है, उन्हीं का फल है। बाप जिद्दी है कि संन्यास नहीं लेना, बेटा जिद्दी है कि लेकर रहूंगा, कि बाप को मजा चखाकर रहूंगा। ___ अब यह अगर संन्यास ले लेगा तो यह असम्यक संकल्प हुआ। यह ठीक संकल्प नहीं है। मैंने उससे कहा कि तू रुक, मैं तुझे संन्यास नहीं दूंगा। तू यह बात छोड़ दे, यह तो बाप ने तुझे संन्यास लिवा दिया! ___एक और घटना आप से कहूं। मेरे एक मित्र थे, एक युवती से उनका प्रेम था। दोनों का बड़ा प्रेम था—ऐसा कम से कम दिखलाते तो थे। दोनों के परिवार विपरीत थे और दोनों जिद्द में थे विवाह करने की। मैंने उनसे कहा, तुम थोड़ा सोच लो। कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह जितना प्रेम तुम्हें दिखायी पड़ता है इतना प्रेम नहीं है, सिर्फ एक जिद्द है, अपने परिवारों से टक्कर लेने की। उन्होंने कहा कि नहीं-नहीं, हमारा प्रेम बहुत गहरा है। मैंने उन्हें कई बार समझाने की कोशिश की, वे मुझसे नाराज भी हो गए कि आप बार-बार यह बात क्यों उठाते हैं? मैंने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि जितना तुम प्रेम समझ रहे हो, इतना नहीं है। यह परिवारों का झगड़ा है। और विवाह के बाद तुम झंझट में पड़ सकते हो, क्योंकि जब विवाह हो जाएगा तो बात खतम हो गयी, परिवार से जो झगड़ा था वह तो समाप्त हो गया। नहीं-नहीं, उन्होंने तो जिद्द से कहा कि हमारा प्रेम है।
विवाह भी कर लिया। एक साल के बाद ही उन्होंने मुझे कहा कि हम भूल में थे। न मुझे लड़की से कुछ लेना-देना है, न लड़की को मुझसे कुछ लेना-देना है। बेटा ब्राह्मण घर का था, लड़की पारसी थी। न लड़की के घर वाले चाहते थे कि ब्राह्मण से शादी हो, ब्राह्मण के घर वाले तो चाह ही कैसे सकते हैं कि पारसी से शादी हो! वह बड़ा झगड़ा था। जिद्द अटक गयी थी। परिवार और बेटा-बेटियों के अहंकार में बड़ी कलह थी। . सालभर में सारा प्रेम बह गया। जब प्रेम बह गया तो अड़चनें शुरू हो गयीं। जो झगड़ा परिवार से चल रहा था वह आपस में चलने लगा। झगडैल प्रवृत्ति के तो थे ही। पहले मां-बाप से लड़ रहे थे, अब तो कोई बात ही न रही, मां-बाप अलग ही पड़ गए। उन्होंने कहा, ठीक है, भूल ही गए, कि जब तुमने शादी कर ली तो अलग हो जाओ। अब जो झगड़ा मां-बाप से लगा था, वह झगड़ा एक-दूसरे के प्रति लगने लगा। उस युवक ने आत्महत्या की, छह साल के भीतर। शराबी हो गया और आत्महत्या तक बात पहुंच गयी।
खयाल रखना, बुद्ध हमेशा अपने भिक्षुओं को कहते थे, सम्यक-संकल्प। किसी हठ के कारण नहीं, अपने बोध से, समझ से। आंतरिक उत्साह से लेना।
तीसरा अंग है, सम्यक-वाणी। बुद्ध कहते थे, जो जाने, वही बोले। और जैसा
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