________________
एस धम्मो सनंतनो
जाने, वैसा ही बोले, जरा भी अन्यथा न करे। और जो बोलने योग्य हो वही बोले, असार न बोले। क्योंकि बोलने से बड़ी उलझनें पैदा होती हैं। जीवन व्यर्थ के जालों में फंस जाता है। तुम जरा खयाल करना, कितनी झंझटें तुम्हारे बोलने की वजह से पैदा हो जाती हैं। किसी से कुछ कह बैठे, झगड़ा हो गया, अब झंझट बनी।
काश, तुम अपने बोलने को थोड़ा न्यून कर लो तो तुम्हारे जीवन की नब्बे प्रतिशत झंझटें तो कम हो जाएं। इस दुनिया में जितने मुकदमे चल रहे हैं, झगड़े चल रहे हैं, सिर फोड़े जा रहे हैं, वह असम्यक-वाणी के कारण हैं।
बुद्ध कहते थे, जिसे स्वयं को जानना है, उसे जितनी कम झंझटें जीवन में पैदा हों, उतना अच्छा है।
चौथा, सम्यक-कर्मांत। व्यर्थ के कामों में न उलझो। वही करो जिसके करने से जीवन का सार मिले। क्योंकि शक्ति सीमित है और समय सीमित है। हममें से अधिक लोग तो कुछ न कुछ करने में लगे रहते हैं। हम खाली बैठना जानते ही नहीं। कुछ करने को न हो तो हमें बड़ी बेचैनी होती है। तो हम अपनी बेचैनी को करने में उलझाए रखते हैं।
न मालूम क्या-क्या आदमी करता रहता है! तुम अगर खाली बैठे हो कमरे में तो तुम कुछ न कुछ करोगे, उठकर खिड़की खोल दोगे, अखबार पढ़ने लगोगे, रेडियो चलाओगे, कुछ न कुछ करोगे। कुछ न मिलेगा, सिगरेट पीने लगोगे। कुछ न कुछ करोगे। व्यस्त रहने में हम अपने पागलपन को छिपाए रहते हैं।
बुद्ध ने कहा, इस तरह की व्यस्तता महंगी है। धीरे-धीरे अव्यस्त बनो। वही करो, जो करना जरूरी है; जो नहीं करना जरूरी है, वह मत करो। अगर बेचैनी होती हो तो बेचैनी को जागरूक होकर देखो, धीरे-धीरे बेचैनी शांत हो जाएगी। और जो शक्ति बचेगी व्यर्थ के कामों से, उसे तुम सार्थक दिशा में मोड़ सकोगे।
पांचवां, सम्यक-आजीव। बुद्ध कहते थे, अपने जीने के लिए किसी का जीवन नष्ट करना अनुचित है। अब कोई कसाई का काम करता है, तो बुद्ध कहते, यह व्यर्थ है। इतना उपद्रव बिना किए आदमी अपना भोजन जुटा ले सकता है। वही करो जिससे किसी के जीवन को अहित न होता हो। क्योंकि जब तुम दूसरों का अहित करते हो तो तुम अपने अहित के लिए बीज बो रहे हो। फिर फसल भी काटनी पड़ेगी। सम्यक-आजीव। __ छठवां, सम्यक-व्यायाम। बुद्ध कहते थे, न तो बहुत सुस्त होओ और न बहुत कर्मी। मध्य में होओ। न तो आलसी बन जाए और न बहुत कर्मठ। क्योंकि आलसी कुछ भी नहीं करता और कर्मठ व्यर्थ के काम करने लगता है। मध्य में चाहिए। सम्यक-व्यायाम। जीवन की ऊर्जा सदा संतुलित हो। .. __ और सातवां बुद्ध का अंग है, सम्यक-स्मृति। सम्यक-ध्यान। होश रखकर जीए। स्मरणपूर्वक जीए। मैं क्या कर रहा हूं, इसे देखते, जानते हुए करे। क्रोध उठे
148