SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सौंदर्य तो है अंतर्मार्ग में मार्ग की बात शुरू करेंगे, ये अभी भी बाहर के मार्गों की सोच रहे हैं ! सूखे मार्गों से कुछ नहीं मिलता, छायादार मार्गों से भी कुछ नहीं मिलता। बाहर के सब मार्ग भटकाते हैं; कोई मार्ग पहुंचाता नहीं । और बाहर के सरोवरों से कहीं प्यास बुझी है, जीवन की तृष्णा बुझी है ! जितना पीओ उतनी प्यास बढ़ती है । और बाहर के वृक्षों से किसी को छाया मिली है ? जब तक कोई अपने अंतरतम की छाया में न बैठ जाए तब तक कोई छाया नहीं है । तब तक सब धोखा है। बाहर तो प्रपंच है, माया है, बाहर तो समय को काटने और भुलाने के उपाय हैं, बाहर उपलब्धि नहीं है। बाहर तो खोना ही खोना है। खोना हो तो बाहर जाना । पाना हो तो भीतर आना । 1 और कोई कह रहा है, फलां नगर का राजा बड़ा श्रेष्ठ; उस नगर का नगर श्रेष्ठी भी वस्तुतः श्रेष्ठ है। कारण ! कारण यही कि वे दान देते हैं। और कहने वाला यह भी कह रहा है कि और दूसरे गांव भी हैं, वहां भूलकर मत जाना; वहां का राजा महाकंजूस, महाकृपण, वहां का नगरसेठ कृपण, इतना ही नहीं वहां की प्रजा भी बड़ी कृपण है - जैसा राजा वैसी प्रजा । वहां से तो अपना भिक्षापात्र भी बचकर लौट आए बहुत । चोरी हो जाने का डर है । चीवर भी चोरी चला जाएगा। मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन गांव का काजी हो गया था। पहला ही मुकदमा आया । एक आदमी को गांव के बाहर लूट लिया गया था। वह आदमी भागा हुआ आया, उसने कहा कि महानुभाव, आपके गांव के बाहर मैं लूट लिया गया, सब लूट लिया गया। मेरी पोटली ले ली गयी, मेरी पोटली में रुपए थे वह ले लिए गए, मेरा घोड़ा भी छुड़ा लिया; यही नहीं, मेरे कोट-कमीज, मेरी धोती भी उतार ली; बहुत लुटेरे देखे हैं, मगर यह भी कोई लूट हुई ! सिर्फ अंडरवियर पहने था। मुल्ला ने उसका अंडरवियर देखा और कहा, अंडरवियर नहीं छीना ? उसने कहा कि नहीं। उन्होंने कहा, तो फिर वे किसी और गांव के रहे होंगे। इस गांव में तो जो भी काम हम करते हैं, पूरा ही करते हैं । तू दूसरे गांव में जाकर अपनी फरियाद कर। यह मेरे गांव का मामला हो ही नहीं सकता । तो भिक्षु कह रहे थे, कुछ ऐसे भी गांव हैं जहां अपनी वस्तुएं बचाकर लौट आओ...ज्यादा उनके पास है भी नहीं; तीन चीवर होते थे भिक्षु के पास, भिक्षापात्र होता था, इतनी उसकी पूंजी थी । 1 मगर यह बड़े मजे की बात है कि पूंजी कम हो कि ज्यादा हो, इससे लगाव में कोई फर्क नहीं पड़ता। जिसके पास महल है, वह महल न खो जाए इससे डरता है। और जिसके पास लंगोटी है, वह लंगोटी न खो जाए इससे डरता है। जहां तक खोने के भय का संबंध है, दोनों का भय बराबर होता है। इसमें जरा भी फर्क नहीं होता । तुम्हारे पास लाख रुपए हैं तो तुम उतने ही भयभीत होते हो, तुम्हारे पास एक रुपया तभी तुम उतने ही भयभीत होते हो। वह एक रुपया खो जाए तो तुम्हारी पूरी संपदा गयी, लाख खो जाएं तो उसकी पूरी संपदा गयी, भय बराबर है। 137
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy