________________ एस धम्मो सनंतनो संसारी ही बने हैं! तो दया तो आएगी, करुणा तो आएगी। निंदा नहीं है—किसी सदगुरु के मन में कभी निंदा नहीं होगी। जब तुम भूल भी करते हो, तब भी उसके हृदय में दया होती है। जब तुम उसके विपरीत भी जाते हो, तब भी तुम्हारे लिए प्रार्थना करता है। जब तुम उससे शत्रुता साध लेते हो, तब भी उसकी अनुकंपा में कोई भेद नहीं पड़ता। वे तो शायद अपनी बातों में इतने तल्लीन हैं कि भगवान को भूल ही गए हैं। भगवान को भूलना कितना आसान, याद रखना कितना कठिन है! लोग कहते हैं, भगवान को जानना है। लोग कहते हैं, भगवान कहां है? लोग : कहते हैं, भगवान दिखला दो, दर्शन करा दो। लेकिन भगवान अगर तुम्हारे सामने भी खड़ा हो तो तुम दर्शन न कर पाओगे, तुम्हारी आंखें बंद हैं। भगवान तुम्हारे कानों के पास चिल्लाए-चीखे, तो तुम सुन न पाओगे, तुम्हारे कान बंद हैं। तुम्हारे भीतर इतना शोरगुल है! तुम अपने शोरगुल को सुनोगे कि भगवान की आवाज सुनोगे! उसकी आवाज बड़ी धीमी है। भगवान चिल्लाता नहीं, फुसफुसाता है। उसकी आवाज में आक्रमण नहीं है। उसकी आवाज एक धीमे स्वर की भांति है, शून्य स्वर की भांति है; संगीत की एक तरंग की भांति है। तुम जब तक शांत न हो जाओ तब तक तुम उस तरंग को न पकड़ पाओगे। जब तुम शांत हो जाओगे तभी तुम पकड़ पाओगे। और शांत होते ही तुम हैरान होओगे कि हम कहां खोजते फिरते थे, उसने तो हमें चारों तरफ से घेरा हुआ है; उसके अतिरिक्त कोई और है ही नहीं। लेकिन यह तो बड़ी दूर की बात हो गयी कि वृक्ष में तुम्हें किसी दिन भगवान दिखायी पड़े। बुद्ध में नहीं दिखायी पड़ता, कृष्ण में नहीं दिखायी पड़ता, कबीर में नहीं दिखायी पड़ता, नानक में नहीं दिखायी पड़ता, यह तो बहुत दूर की बात हो गयी कि पत्थर में दिखायी पड़े। ___ अब देखो, आदमी कैसा अदभुत है! मंदिर में पत्थर की मूर्तियां बनाकर बैठा है। तुम्हें जीवित मौजूद कोई हो तो दिखायी नहीं पड़ता, पत्थर की मूर्ति में कैसे दिखायी पड़ेगा! तुम्हें चलता-फिरता हंसता हुआ भगवान भी दिखायी नहीं पड़ता; बोलता, जागता, श्वास लेता भगवान दिखायी नहीं पड़ता; पत्थर की मूर्ति में कैसे दिखायी पड़ेगा! पत्थर की मूर्ति में तो अंतिम रूप से दिखायी पड़ सकता है जब सब जगह दिखायी पड़ गया तब दिखायी पड़ सकता है। पत्थर की मूर्ति यात्रा का प्रारंभ नहीं हो सकती, यात्रा का अंत भले हो। कोई कह रहा है, अमुक गांव का मार्ग बड़ा सुंदर है, अमुक गांव का मार्ग बहुत खराब है-वहां भूलकर मत जाना—अमुक मार्ग पर कंकड़-पत्थर हैं, कांटे हैं, छाया भी नहीं है और सरोवर भी नहीं हैं। अमुक मार्ग बड़ा साफ-सुथरा है, बड़े छायादार वृक्ष हैं वहां, स्वच्छ सरोवर भी हैं। बुद्ध सुनते हैं, चौंकते हैं। सोचते होंगे कि मैं तो सोचता था, ये अब भीतर के 136