________________ सौंदर्य तो है अंतर्मार्ग में सूरज ढल गया; एक दिवस और बीत गया। रात्रि उतरने लगी, रात के पहले तारे उभर आए। शांत है विहार। ___संध्या हो गयी तो पक्षी भी चुप हो गए, वृक्ष भी सोने की तैयारी करने लगे। आदमी पक्षियों और वृक्षों से भी गया-बीता है। पक्षियों ने भी पंख सिकोड़ लिए, अपने-अपने घोंसलों में दुबककर बैठ गए। रात की तैयारी होने लगी। वृक्षों ने भी अपने पत्ते ढीले छोड़ दिए, फूल बंद हो गए, मौत का इंतजाम होने लगा। लेकिन आदमी है कि लगा है। अगर संसारी हो तो ठीक, क्षमा कर दो। लेकिन संन्यासी भी लगा है, व्यर्थ की बातों में लगा है। शांत थे ये क्षण, शीतल समीर बह रहा था, इस मौके का तो उपयोग कर लेना चाहिए। ___ सोचो उस घड़ी को, उस दृश्य को आंखों में बन जाने दो, उस दृश्य में थोड़ी देर जीओ, तो ही ये सूत्र जीवित हो पाएंगे; तो ये गाथाएं पुनरुज्जीवित हो जाएंगी। तब तुम इन्हें ऐसे ही सुन पाओगे जैसे तुम मौजूद रहे होओ। यही मैं चाहता हूं कि तुम फिर मौजूद हो जाओ उस जगह। सांझ, पहले तारे निकलने लगे, रात उतरने लगी, शीतल हवा बहती, पशु-पक्षी सब शांत हो गए, वृक्षों ने भी अपनी आंखें बंद कर लीं, सोने की तैयारी करने लगे। और ये भिक्षु, और भगवान की मौजूदगी-फिर भी संध्या में न उतरे, फिर भी प्रार्थना में न उतरे। ये संसारी ही थे, इन्होंने चीवर पहन लिए थे भिक्षु के; इन्होंने गैरिक वस्त्र धारण कर लिए थे; इन्होंने दुकानदारी छोड़ दी थी, मगर ऊपर-ऊपर छूटी थी, भीतर दुकानें खुली थीं। मन न रंगाए रंगाए जोगी कपड़ा __ कपड़े रंग लिए थे, मन नहीं रंगा था। तो तुम किसको धोखा दे रहे हो? तुम अपने को ही धोखा दे रहे हो। भगवान जेतवन में ठहरे हैं। पांच सौ भिक्षु आसनशाला में बैठे हुए बातें कर रहे हैं। पहली तो बात भिक्षुओं को मौन होना चाहिए। जहां तक बन सके, मौन होना चाहिए; जितना बन सके, मौन होना चाहिए। जितनी घड़ियां मौन में बीत जाएं, उतना शुभ। पहली तो बात, बात भिक्षुओं को करनी नहीं चाहिए, जब तक कि अनिवार्य न हो जाए। भिक्षुओं को मितभाषी होना चाहिए। टेलीग्रैफिक, जितने शब्द बिलकुल जरूरी हों, बस उतने ही बोलने चाहिए, उससे ज्यादा नहीं। तुम टेलीग्राम देने जाते न पोस्ट आफिस, तो कितना सोच-विचार करते हो! क्योंकि दस शब्द ही भेजने हैं। सब काट-छांट कर देते हो, जो-जो बेकार शब्द हैं, निकाल देते हो; दस शब्द बना लेते हो। यही तुम पत्र लिखने बैठते हो तो फिर फिक्र नहीं करते, दस पेज लिख डालते हो। और तुमने एक चमत्कार की बात देखी कि दस शब्दों वाले तार का जो प्रभाव होता है, वह दस पेज वाले पत्र का नहीं होता। मामला क्या है ? व्यर्थ शब्दों में सार्थक शब्द भी खो जाते हैं। व्यर्थ शब्दों को काट 133