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________________ सौंदर्य तो है अंतर्मार्ग में संयोग की बात, भिक्षुओं में और भी लोग आए थे सुनने। एक चोर भी आया था, एक वेश्या भी आयी थी। यह जो बुद्ध कहते थे कि अब रात्रि का अंतिम काम कर डालो, वह था ध्यान में उतर जाना। क्योंकि बुद्ध कहते थे, पता नहीं कल सुबह हो या न हो। मौत तुम्हें ध्यान में पाए। नींद तुम्हें ध्यान में पाए, क्योंकि नींद छोटी मौत है। नींद रोज-रोज मौत का ही तो स्वाद है। ऐसे ही तो एक दिन मौत में लीन हो जाओगे; जैसे रोज नींद में खो जाते हो। और देखा तुमने, नींद में तुम्हारा बाहर का संसार पड़ा रह जाता है—न तो याद रहती है कि तुम गरीब हो, न याद रहती कि तुम अमीर हो, न याद रहती कि पढ़े-लिखे कि अपढ़, न याद रहती कि ज्ञानी कि पंडित, न याद रहती कि बच्चे कि जवान कि बूढ़े, कि स्त्री कि पुरुष, न याद रहती सुंदर, असुंदर, कुछ भी याद नहीं रह जाता। यही याद नहीं रह जाती कि मेरा नाम क्या, पता-ठिकाना क्या! बाहर का सब नींद में ही पड़ा रह जाता है, तो मौत की तो बात ही क्या कहनी है! तो हर रोज नींद आती, मौत की खबर लेकर आती। छोटी-छोटी मौत का अनुभव लाती। . तो बुद्ध कहते थे, रात सोने के पहले, रोज रात मरने के पहले ध्यान में उतर जाओ। कौन जाने सुबह हो या न हो! मौत तुम्हें ध्यान में पाए। तो जीवन रूपांतरित हो जाएगा। तो फिर दुबारा जन्म न होगा। अब इसको रोज-रोज कहना पड़ता था, इसलिए उन्होंने यह एक प्रतीक बना लिया था कि भिक्षुओ, अब जाओ और रात्रि का अंतिम कार्य कर डालो। भिक्षु तो उठकर ध्यान करने चले गए। चोर चौंका, उसने कहा, रात हो गयी काफी, ठीक ही कहते हैं कि जाऊं अपने काम में लगू। चोरी उसका काम था। और वेश्या ने सोचा कि ठीक ही कहते हैं भगवान, इनको पता कैसे चला कि वेश्यागिरी मेरा काम है और रात आ गयी है, अपने काम में लगूं! एक ही वचन बोला था बुद्ध ने कि रात आ गयी, नींद करीब आ रही है, अब जाओ अपना आखिरी काम कर डालो। जिन्हें ध्यान करना था वे ध्यान करने चले . गए, जिन्हें चोरी करना था वे चोरी करने चले गए, जिन्हें वेश्यागमन करना था वे वेश्यागमन करने चले गए; जो वेश्या थी उसने अपनी दुकान खोल ली, चोर अपने काम पर निकल गया-एक ही वचन, लेकिन अर्थ अनेक हो गए। सूरज ढलता है। आंख तो वही खबर लाती है, लेकिन भीतर की चेतना अलग-अलग व्याख्या करती है। सना है मैंने, दो आदमी एक झील के किनारे खड़े थे। पूरे चांद की रात थी, चांद ऊपर उठा था, झील में चांद चमक रहा था। एक आदमी कवि था और एक कबाड़ी था। कबाड़ी ने ऐसा झील में गौर से देखा और कहा कि अरे, एक जूता पड़ा मालूम पड़ता है, और एक टीन का डिब्बा भी पड़ा है। और उस कवि ने तो अपने सिर में हाथ मार लिया। उसने कहा, चांद पड़ा है इस झील में, तुझे चांद नहीं दिखायी 131
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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