SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो कैसी छाया! और बाह्यमार्गों पर कैसे सरोवर! सौंदर्य तो है आर्यमार्ग में। सौंदर्य तो है अंतर्मार्ग में। छाया भी वहीं है, सरोवर भी वहीं है। शरण ही खोजनी हो तो वहीं खोजो। वहीं मिटेगी प्यास, वहीं मिटेगी तपन, वहीं मिटेगी भूख, और कहीं नहीं। भिक्षु को आर्यमार्ग में ही रहना चाहिए, क्योंकि वही दुख-निरोध का मार्ग है। और तब उन्होंने ये गाथाएं कहीं। पहले तो इस कहानी के एक-एक हिस्से को खूब गहरे हृदय में उतर जाने दें, तो गाथाएं समझ में आ जाएंगी। सूरज ढल गया; एक दिवस और बीत गया। संन्यासी यदि सच में संन्यासी है, तो मौत करीब आ गयी, मौत और करीब आ गयी, उसे और सजग हो जाना चाहिए। एक दिन हाथ से और जा चुका और अभी तक कुछ विशिष्ठ हुआ नहीं-ध्यान नहीं हुआ, समाधि नहीं लगी, अभी तक करुणा का दीया नहीं जला, एक दिन और गया। और कौन जाने कल सुबह हो, न हो; यह रात आखिरी हो। अगर कोई सच में संन्यस्त है, तो ये घड़ियां व्यर्थ की बातों में गंवाने की नहीं। सूरज ढल गया है, ऐसे ही एक दिन हम ढल जाएंगे। हर ढलते सूरज के साथ हम ढल रहे हैं। हर संध्या हम और थोड़े कम हो गए। इधर दिन बीतते हैं, उधर हमारे जीवन की ऊर्जा चुकती जाती है। बूंद-बूंद करके एक दिन जीवन समाप्त हो जाएगा। संसारी व्यर्थ की बातें सोचे, समझ में आता है; लेकिन संन्यस्त ! संन्यस्त को तो एक ही बात महत्वपूर्ण है कि मृत्यु है और जीवन को अभी तक मैंने जाना नहीं। संन्यासी के सामने तो एक ही सवाल है, एक ही चुनौती है कि मौत पास आ रही है और जीवन से मेरा अभी तक परिचय नहीं हुआ। जीवन क्या है, अभी मैं उत्तर देने में समर्थ नहीं। मैं कौन हूं, अब तक साक्षात्कार नहीं हुआ। ये घड़ियां, बीतती घड़ियां ऐसे व्यर्थ गंवाने को नहीं हैं। सूरज ढल गया है। एक दिवस और बीत गया! रात्रि उतरने लगी, ऐसे ही एक दिन मौत उतर आएगी। रोज उतरती रात्रि अंततः आने वाली मौत की खबर लाती है। अंधेरा उतरने लगा। ऐसे ही एक दिन महा अंधकार उतर आएगा। तुम आए भी, गए भी, और तुम्हारे जीवन में कुछ भी न हुआ! जैसे आए वैसे चले गए! खाली हाथ आए, खाली हाथ चले गए! कूड़ा-करकट बटोरा भी तो वह सब पड़ा रह जाएगा। तो संसारी और संन्यासी में फर्क होगा। हर दृष्टि से फर्क होगा। एक ही जगह खड़े हों भला दोनों, एक ही ढलते सूरज को देखते हों, लेकिन संन्यासी कुछ और देखेगा और संसारी कुछ और देखेगा। एक रात ऐसा हुआ। बुद्ध ने अपना प्रवचन दिया। अपने प्रवचन के बाद वह रोज ही कहते थे, अब जाओ, रात्रि का अंतिम कार्य कर डालो। लेकिन उस दिन 130
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy