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________________ सौंदर्य तो है अंतर्मार्ग में तय करना कठिन है कि वे संसारी हैं या संन्यासी हैं। उनकी चर्चा-वार्ता के विषय अंतर्यात्रा के विषय ही नहीं हैं। जैसे वे अभी भी बहिर्यात्रा में ही संलग्न हों।। भगवान मौन बैठे उनकी बातें सुन रहे हैं। चकित हैं और करुणा से भरे हुए भी। हैरान हैं और उनके प्रति बड़ी दया का भाव भी है। वे तो शायद अपनी बातों में इतने तल्लीन हैं कि भगवान को भूल ही गए हैं। भगवान को भूलना कितना आसान, याद रखना कितना कठिन है! भगवान पास भी मौजूद हों तो भी भूलना आसान। भगवान सामने बैठे हों तो भी भूलना आसान। भिक्षु अपनी बातों में इतने तल्लीन हैं कि उन्हें याद ही नहीं रही कि भगवान भी पास बैठे सुन रहे हैं। उनका विस्मरण हो गया है। कोई कह रहा है, अमुक गांव का मार्ग बड़ा सुंदर है, अमुक गांव का मार्ग बड़ा खराब है। अमुक मार्ग पर कंकड़-पत्थर हैं, कांटे हैं, अमुक मार्ग बड़ा साफ-सुथरा है। अमुक मार्ग पर छायादार वृक्ष हैं, स्वच्छ सरोवर भी हैं; और अमुक मार्ग बहुत रूखा-सूखा है, उससे भगवान बचाएं। भिक्षु हैं, पर्यटन करना होता है, अलग-अलग मार्गों पर चलना होता है, गांव-गांव भटकना होता है, तो बात चल रही है कि कौन से मार्ग जाने योग्य हैं, कौन से मार्ग जाने योग्य नहीं हैं। और कोई कह रहा है कि फलां नगर का राजा अदभुत है, बड़ा दानी है। उस नगर का सेठ भी सच्चा सेठ है-श्रेष्ठी ही है। - सेठ शब्द आया है श्रेष्ठ से। उस धनी को ही श्रेष्ठ कहते थे, सेठ कहते थे, जो दानी हो। तो भिक्षु कह रहे हैं, राजा भी अदभुत, उस नगर का जो नगरसेठ है, नगरश्रेष्ठी है, वह सच में ही श्रेष्ठ है। और फलां नगर का राजा भी कंजूस, उसका नगरसेठ भी कंजूस, उसकी जनता भी कंजूस, वहां तो भूलकर कोई पैर न रखे। उन्होंने तो इस धर्म का नाम ही नहीं सुना है। उस नगर में तो दान की कोई आशा ही न रखे। अपना भिक्षापात्र भी चोरी न जाए तो बहुत; समझो कि तुम भाग्यवान हो। अपने . चीवर बचाकर निकल आए उस गांव से तो समझो प्रभु की बड़ी कृपा है। दान देने वाले जैसे अब रहे ही नहीं। और दान को सभी शास्ताओं ने धर्म का मूल कहा है। और कोई अन्य कह रहा है, सुंदर स्त्री-पुरुष देखने हों तो उस-उस राज्य में जाओ। शेष जगहों पर तो हीन, कुरूप स्त्री-पुरुषों के समूह मात्र हैं, जमघट मात्र हैं, भीड़-भाड़ है। __भगवान ने यह सब सुना। चौंके भी, हंसे भी। उन भिक्षुओं को पास बुलाया और बोले-भिक्षुओ, बाह्यमार्गों की बातें करते झिझकते नहीं? भिक्षु होकर भी बाहर के मार्गों की बात करते हो! अंतर्मार्ग की सोचो, भिक्षुओ! समय थोड़ा और करने को बहुत कुछ शेष है। इन्हीं बाह्यमार्गों पर जन्म-जन्म भटकते रहे हो, अभी भी थके नहीं? और भी भटकना है? बाह्यमार्गों में कैसा सौंदर्य! और बाह्यमार्गों में 129
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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