________________ एस धम्मो सनंतनो आदमी बड़ा जटिल है। बदलने की घड़ी भी आ जाए तो ऊपर से बदल जाता है और भीतर की बदलाहट बचा जाता है। कबीर ने कहा है, मन न रंगाए रंगाए जोगी कपड़ा। कपड़े को रंग लेना तो आसान है। असली बात तो मन को रंगने की है। कपड़े का रंग जाना मन के रंगने की खबर हो तब तो ठीक, शुभ। और कपड़े का रंग जानां मन को रंगने से बचने का उपाय हो, तो बहुत खतरनाक। इससे तो बेहतर था जैसे थे वैसे ही रहते, कम से कम धोखा तो न होता। प्रार्थना की घड़ी आती है तो आदमी मंदिर चला जाता है। ऊपर-ऊपर की प्रार्थना कर लेता है, भीतर हृदय पिघलता ही नहीं। इससे तो बेहतर था प्रार्थना न करते। पीड़ा तो रहती कि प्रार्थना नहीं की। अब प्रार्थना भी कर ली और प्रार्थना हुई भी नहीं, ऐसी जटिलता है। . मन जो आखिरी धोखा देता है आदमी को, वह यही है कि तुम्हें समझा देता है कि लो देखो, अब और क्या करना है, पूजा भी कर ली, प्रार्थना भी कर ली, मंदिर भी हो आए, कपड़े भी रंग लिए, संसारी थे संन्यासी हो गए, अब और करने को क्या बचा! ऊपर-ऊपर के फर्क से कुछ होता नहीं। परिधि को कितना ही रंगो, जब तक केंद्र न रंग जाए तब तक क्रांति नहीं होती। तुम्हारा असली चेहरा तो वही का वही रहता है, ऊपर से मुखौटे पहन लेते हो। आदमी की यह जटिलता धीरे-धीरे दूसरों को धोखा देने से पैदा हुई है। जब तुम दूसरों को धोखा देते हो और बहुत कुशल हो जाते हो, तो एक दिन तुम अपने को भी धोखा दे लेते हो। ' ____ इसीलिए शास्ताओं ने कहा है, दूसरों को धोखा मत देना। क्योंकि दूसरों को धोखा देने का अंतिम परिणाम एक ही होगा कि तुम अपने को भी धोखा दे लोगे। बेईमानी में इतने निष्णात हो जाओगे कि अंततः जो गड्डा तुमने दूसरों के लिए खोदा है, वह तुम्हारी ही कब्र बनेगा। ऐसा ही हो रहा है। तुम दूसरे से झूठ बोलकर सच को छिपा लेते हो। एक दिन तुम पाओगे, तुमने अपने से झूठ बोलकर सच को छिपा लिया। तुम झूठ बोलने में इतने पारंगत हो गए, अपने से ही झूठ बोल रहे हो और पकड़ नहीं पाते। तुम्हारी बेईमानी इतनी कुशल हो गयी, इतनी कलात्मक हो गयी कि अब तुम खुद भी न पकड़ पाओगे कि कैसे और कब तुमने अपने को धोखा दे दिया। आज के सूत्र इस संदर्भ में ही हैं। पहले तो संदर्भ को समझ लें। सूत्र-संदर्भ सूरज ढला, एक दिवस और बीत गया। रात्रि उतरने लगी, रात के पहले तारे आकाश में उभर आए। शांत है विहार और शीतल समीर बह रहा है। भगवान जेतवन में ठहरे हैं। उनके साथ पांच सौ भिक्षु भी ठहरे हैं। .. __ ये पांच सौ भिक्षु आसनशाला में बैठे हुए बातचीत कर रहे हैं, गपशप कर रहे हैं। आश्चर्य कि उनकी बातचीत और साधारणजनों जैसी ही है। उनकी बातें सुनकर 128