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________________ एस धम्मो सनंतनो ये दुखवादी हैं । और शापेनहार को भी यह भ्रांति है कि वह बुद्ध से प्रभावित है। वह बिलकुल भी बुद्ध से प्रभावित नहीं है, वह बुद्ध के बिलकुल विपरीत बात कह रहा है। उसने बुद्ध के चार आर्य सत्य समझे नहीं । बुद्ध कहते हैं, दुख है। दूसरा आर्य सत्य, दुख के कारण हैं। अकारण नहीं है दुख । अगर अकारण हो तो फिर मिटाना मुश्किल है। दुख है, जरूर दुख है, लेकिन इसके कारण हैं। अगर कारण छोड़ दो, दुख मिट जाएगा। और फिर तीसरा सत्य है कि इस दुख को मिटाने के उपाय हैं। और फिर चौथी घोषणा है— बुद्ध कहते हैं, मैं अपने अनुभव से कहता हूं, वह दशा भी है जहां दुख बिलकुल निरुद्ध हो जाता है, जहां दुख बिलकुल समाप्त हो जाता है। - बुद्ध को दुखवादी कहोगे ? पहली बात ही सुनी और बात खतम हो गयी ! तुम डाक्टर के पास गए और उसने कहा कि तुम्हें टी.बी. है। और तुम भागे कि यह आदमी दुखवादी है। इसने हमको टी. बी. बता दी। हम तो वैसे ही परेशान हैं और अब इन्होंने टी. बी. बता दी। किसी तरह अपने को भुला रहे थे, किसी तरह अपने को चला रहे थे, अब इस आदमी ने और मुसीबत खड़ी कर दी। तुमने पूरी बात ही न सुनी। वह यह कह रहा था कि हां, क्षयरोग है, क्षयरोग के कारण हैं, क्षयरोग के कारणों से छुटकारे के लिए औषधियां हैं और क्षयरोग से छूट यी अवस्था भी है। तुमने तीन सत्य सुने ही नहीं। पहले सत्य पर ही शापेनहार उलझ गया, और उसने मान लिया कि वह बुद्ध को समझ गया । ऐसे ही ज्यां पाल सार्त्र है पश्चिम में, जो कहता है कि सब दुख है, अर्थहीन, विषाद ही विषाद, जीवन संताप ही संताप । तो पश्चिम को ऐसा लगता है कि बुद्ध वही कह रहे हैं जो शापेनहार कहते हैं और सार्त्र कहते हैं । नहीं, बुद्ध की बात बिलकुल भिन्न है । बुद्ध से बड़ा महासुखवादी खोजना मुश्किल है। मुझे ऐसा कहने दो कि बुद्ध से बड़ा सुखवादी खोजना कठिन है । बुद्ध हेडोनिस्ट हैं, सुखवादी हैं । और इसीलिए तुम्हारे दुख को बार-बार दिखाते हैं कि तुम नाहक दुख में समय खराब कर रहे हो, सुख हो सकता है। इधर बगल में पड़ी है बात, इस हाथ की तरफ तो देखो जरा, तुम एक ही तरफ उलझे हो और जीवन को दुख में डाले जा रहे हो । बुद्ध का इतना चिल्लाना करुणा के कारण है । बुद्ध देखते हैं कि तुम्हारे भीतर सुख की महावर्षा हो सकती है और तुम दुख के कीड़े बन गए हो, इसलिए चिल्लाते हैं । बुद्ध दुखवादी नहीं हैं और न ही तुम्हारे जीवन का सुख छीन लेना चाहते हैं— सुख तो है ही नहीं, छीनेंगे भी क्या ! बुद्ध तुम्हारे जीवन का यथार्थ तुम्हें बता देना चाहते हैं। ताकि तुम्हें यथार्थ चुभने लगे, छाती में तीर की तरह लगने लगे और एक दिन तुम भी पूछो कि ठीक है, देखा कि जीवन दुख है, अब उपाय क्या है? जब दुख दिखायी पड़ेगा तभी तो उपाय पूछोगे न ! 118
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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