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________________ जागरण ही ज्ञान इसलिए बुद्ध दोहराते हैं कि दुख ही दुख है। क्योंकि सुख ही सुख हो सकता है। यही ऊर्जा जो दुख बन रही है, यही ऊर्जा सुख बन जाती है। यही जो अभी विषाद बना है, उत्सव बन जाता है। यही जो अभी आंसू हैं, गीत बन जाते हैं। छठवां प्रश्नः . मैं बहुत अज्ञानी हूं, दया करें और मुझे ज्ञान दें। ज्ञा न तो दिया नहीं जा सकता। हां, लिया जा सकता है, दिया नहीं जा सकता। तुम ले लो तो ले लो, मेरे दिए न हो सकेगा। नदी बह रही है, तुम पीना चाहो पी लो, नदी छलांग लगाकर तुम्हारे ओंठों को न छू सकेगी। नदी बहती रहेगी, तुम पर निर्भर है। झुक जाओ, भर लो अंजुलि, जितना पीना हो पी लो। मेरी तरफ से देने में कमी नहीं है, लेकिन मैं तुम्हें दे न सकूँगा, तुम लेना चाहो तो ले सकोगे—मैं इधर उपलब्ध हूं। पूछते हो, 'मैं बहुत अज्ञानी हूं, दया करें और मुझे ज्ञान दें।' फिर दूसरी बात, तुम्हारी धारणा अज्ञान के संबंध में और ज्ञान के संबंध में जरूर कुछ भ्रांत होगी। तुम सोचते हो शायद, तुम्हें कुछ बातें पता नहीं हैं, पता हो जाएं तो तुम्हारा अज्ञान मिट जाएगा। नहीं जी! कुछ बातें पता चलने से अज्ञान नहीं मिटेगा, अज्ञान ढंक जाएगा। अज्ञान को मिटाना हो तो कुछ बातें पता चलने की जरूरत नहीं है, एक ही बात पता चलने की जरूरत है कि तुम कौन हो? और तुम कौन हो, यह मैं तुम्हें कैसे बताऊंगा? तुम कौन हो, यह तो तुम्हें अपने अंतर्तम में जाकर देखना होगा। तुम हो, बड़ी बात तो यही है कि तुम हो। और तुम होशपूर्वक भी हो, नहीं तो कौन पूछता कि मैं अज्ञानी हूं और मुझे ज्ञान दें? तुम्हें होश भी है। धीमा-धीमा है, धुंधला-धुंधला है; ज्योति है, बहुत साफ नहीं है, लेकिन है तो। साफ की जा सकती है। सोना है, मिट्टी मिला है, तो मिट्टी बाहर निकाली जा सकती है, आग में सोना डाला जा सकता है। जल है, अस्वच्छ है, छाना जा सकता है, निखारा जा सकता है। वस्त्र हैं, गंदे हैं, तो साबुन उपलब्ध है-संन्यास साबुन है-धो लो। लेकिन खयाल रखना कि ज्ञान कोई ऐसी बात नहीं है जैसे जानकारी। जानकारी ज्ञान नहीं है। इन्फर्मेशन ज्ञान नहीं है। ऐसा कुछ नहीं है कि मैं तुम्हें बता दूं कि परमात्मा है, आत्मा है, और तुमने सुन लिया और तुमने जान लिया और अज्ञान मिट गया। काश, इतना सस्ता होता! काश, इतना आसान होता! तब तो तुम जानते ही हो ये बातें, अब और जनाने को क्या है? नहीं, अज्ञान 119
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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