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________________ जागरण ही ज्ञान बुद्ध ने कहा, जन्म दुख है। बुद्ध ने यह नहीं कहा कि मृत्यु दुख है, बुद्ध ने कहा, जन्म ही दुख है-मृत्यु तो होगी ही। हम तो मानते हैं कि मृत्यु है दुख, मृत्यु तो आएगी जब आएगी। कौन जाने आती भी कि नहीं आती, सदा दूसरे की आती, अपनी तो कभी आती नहीं। और हो सकता है हम बच जाएं कोई तरकीब से, या कौन जाने विज्ञान तब तक कोई उपाय खोज ले, कोई दवा खोज ले। और फिर जब होगा तब होगा, इतनी दूर की तो बात हमें पकड़ती भी नहीं, परेशान भी नहीं करती। __इसलिए बुद्ध कहते हैं, जन्म दुख है, जवानी दुख है। बुद्ध कहते हैं, मित्रता दुख है, प्रेम दुख है, संबंध दुख है, राग दुख है। बुद्ध कहते हैं, हार दुख है, जीत दुख है, असफलता तो दुख है ही, सफलता भी दुख है। सफल आदमी को भी तो देखो जरा। जब वह बैठ जाता है अपनी कुर्सी पर, तब उसकी हालत तो देखो जरा! सफलता भी क्या खाक सफलता है! बुद्ध कहते हैं, सब दुख है। __ तुम्हें सुनकर थोड़ी बेचैनी हुई होगी, इसीलिए तुम पूछते हो, कि हमें सुख से बैठने न दोगे। हम दो क्षण अपने को भुला लें, तो भूलने न दोगे! हम थोड़ा अपने को रंग में डुबा लें, तो डूबने न दोगे! तुम चिल्लाए ही चले जा रहे हो कि जीवन दुख है! __ तुम पूछते हो कि 'क्या जीवन सचमुच ही दुख है? दुख ही दुख, दुख के सिवा उसमें और कुछ भी नहीं?' नहीं, और बहुत कुछ है। इसीलिए बुद्ध दोहराते हैं कि जीवन दुख है। ताकि वह जो बहुत कुछ है, उसकी तरफ तुम्हारी आंख उठे। तुम्हारा जीवन दुख है। जब बुद्ध कहते हैं, जीवन दुख है, बुद्ध अपने जीवन को दुख नहीं कह रहे हैं, स्मरण रखना। मैं भी तुमसे कहता हूं, तुम्हारा जीवन दुख है, दुख ही दुख है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि मैं जीवन की निंदा कर रहा हूं। मैं सिर्फ इतना ही कह रहा हूं कि तुम्हारे जीवन का जो ढंग है, वह दुख है। एक और ढंग भी है जो महासुख है। तुम्हारा जीवन दुख है, मेरा जीवन दुख नहीं है। और तुम्हारा जीवन दुख है, यह तुम्हें दिखायी पड़े तो ही तुम मेरे जीवन की तरफ चल सकोगे, नहीं तो नहीं चल सकोगे। . अब तुम समझना। बुद्ध के साथ बहुत अन्याय हुआ है। पश्चिम में तो बुद्ध पर बहुत किताबें लिखी गयी हैं, सबमें बुद्ध को पैसिमिस्ट, निराशावादी लिखा है। कि यह आदमी दुखवादी है, यह आदमी दुख ही दुख की बात करता है। यह कहता है, सब दुख है। यह आदमी तो निराशा पैदा कर देता है। ___ वह सब भ्रांत बातें हैं, वह धारणा गलत है। बुद्ध दुख की बात करते हैं, इसलिए नहीं कि दुखवादी हैं। भूल-चूक हो गयी पश्चिम में समझने वालों की। पश्चिम में दुखवादी हुए हैं, तो उन्होंने सोचा कि यह आदमी भी दुखवादी है। पश्चिम में दुखवादी हैं, जो कहते हैं, दुख है। शापेनहार कहता है, सब दुख है। मगर वह दुखवादी है। वह कहता है, इस दुख के पार कोई उपाय ही नहीं है। दुख से छूटने की कोई संभावना ही नहीं है। दुख के अतिरिक्त कोई होने की व्यवस्था ही नहीं है। 117
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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