________________
एस धम्मो सनंतनो
बनना राजनीति है और किसी के गुलाम बन जाना भी राजनीति है।
तो न तो किसी के मालिक बनना चाहना और न किसी के गुलाम बनना चाहना। न तो किसी को मौका देना कि तुम्हें मालिक बना ले और न किसी को मौका देना कि तुम्हें गुलाम बना ले।
दुनिया में दो तरह की राजनीति है। मालिक की राजनीति और गुलाम की राजनीति। मालिक की राजनीति प्रगट होती है, गुलाम की राजनीति अप्रगट होती है। इससे तुम यह मत समझना कि तुम पद पर नहीं हो, प्रतिष्ठा पर नहीं हो, तो तुम राजनीति के बाहर हो ही गए। जरूरी नहीं है। पद-प्रतिष्ठा पर भला न होओ, तो तुम गुलाम की राजनीति का खेल खेल रहे होओगे। तुम वहां से चालबाजी चलोगे। ___ इसे समझो। पुरुषों के हाथ में ताकत है, स्त्रियों के हाथ में ताकत नहीं है, तो स्त्रियां गुलाम की राजनीति का पार्ट अदा कर रही हैं सदियों से। बड़ी तरकीब से पुरुष को गुलाम करती हैं। तरकीब सूक्ष्म होती है। पुरुष को बिलकुल निर्भर कर देती हैं। मालिक तो पुरुष है, दिखावे के लिए मालिक पुरुष है। और पुरुष मानता है कि वह मालिक है, उसकी चलती है, लेकिन भीतर स्त्री तरकीब से चलाती है। रोती है, परेशान होती है, बीमार हो जाती है। तो उसकी माननी पड़ती है। वह गुलाम की राजनीति है, वह कमजोर की राजनीति है।
दोनों भ्रष्ट हो गए। नेता भ्रष्ट हो गए हैं, अनुयायी भ्रष्ट हो गए हैं। मालिक भ्रष्ट हो गए हैं, गुलाम भ्रष्ट हो गए हैं। राजनीति का मतलब ही केवल इतना है कि मैं दूसरे को चलाऊं। किस तरह से चलाऊं, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है।
मैं एक कहानी पढ़ रहा था। सच ही होगी कहानी।
तारीख उन्नीस मार्च को लोकसभा के लिए मतदान होना था। सरकार तब कांग्रेस की थी। अठारह मार्च की शाम को एक घर में तीन मित्र बैठे बातें कर रहे थे। स्वभावतः, अठारह मार्च की शाम और बात होती भी क्या, राजनीति की बात चल रही थी-क्या होगा चुनाव का फल ? एक ने कहा, कल मतदान हो जाएगा। दूसरे ने कहा, इस बार जनता पार्टी का बड़ा जोर है। तीसरे ने कहा, हम तो कांग्रेस को ही वोट देंगे, आफ्टर आल हम सरकारी आदमी हैं।
मतदान हो गया। बाईस तारीख को चुनाव परिणाम की घोषणा के बाद फिर वे ही तीन लोग बैठे बातें कर रहे थे। एक ने कहा, अब तो जनता पार्टी की सरकार बन ही गयी। दूसरे ने कहा, किसी को उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस इस बुरी तरह से हारेगी और जनता पार्टी इस कदर जीतेगी। तीसरे ने कहा-ये वही सज्जन थे, जिन्होंने कहा था कि हम तो सरकारी आदमी ठहरे, सरकारी नौकर थे, तो हम तो कांग्रेस को ही वोट देंगे-ये तीसरे सज्जन बोले, ठीक है जी, हमारा वोट जनता पार्टी के काम आ गया। दोनों मित्र चौंके, उन्होंने कहा, क्या कहते हो? आप तो कह रहे थे, मैं कांग्रेस को वोट दूंगा। उन्होंने कहा, तो क्या आपने जनता पार्टी को वोट दिया फिर? वे तीसरे
114