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________________ जागरण ही ज्ञान मालूम होता है, क्योंकि चुभन अभी भी है। घाव रह गया। मन से बहुत सावधान रहना, मन बहुत चालबाज है । और कभी-कभी बड़ी अच्छी बातें करता है—- बीती ताहि बिसार दे! बीत ही गयी होती तो प्रबल भाव न उठता स्वीकार करने का । पूछा है. कृष्णप्रिया ने, 'तो ऐसे में आप क्या मार्गदर्शन देंगे ?' मैं तो हमेशा ही प्रबल भाव के पक्ष में हूं। जो प्रबल भाव उठे, उसे दबाना मत। और जब ऐसा शुभ भाव उठ रहा हो, तब तो दबाना ही मत। तब तो उसे प्रगट करना । इससे तुम्हारी शुद्धता बढ़ेगी, स्वच्छता बढ़ेगी और दुबारा होने की संभावना कम हो जाएगी!. चौथा प्रश्न : क्या जब तक मन है, तब तक हम किसी न किसी तरह की राजनीति में उलझे ही रहते हैं ? क्या मन से पार हुए बिना राजनीति से ऊपर उठने का कोई उपाय नहीं है ? कृपा करके समझाएं। मन ही राजनीति है। मन की सारी चेष्टाएं शोषण की हैं। मन के सारे आयोजन दूसरों पर मालकियत करने के हैं। मन महत्वाकांक्षा के जहर से भरा है। मन ही राजनीति है । इसीलिए तो मैं कहता हूं कि धार्मिक व्यक्ति को राजनीति की दिशा में जाना असंभव है। क्योंकि धार्मिक व्यक्ति पैदा ही तब होता है जब वह मन के पार उठता है, ध्यान में उठता है, अ-मन की दशा में जाता है, उन्मन होता है, तब तो धर्म पैदा होता है। राजनीति का अर्थ होता है: दूसरों पर कब्जा कर लूं, दूसरों से बड़ा हो जाऊं, दूसरों से महत्वपूर्ण हो जाऊं, दूसरों को पीछे डाल दूं, दूसरे न कुछ सिद्ध हो जाएं और मैं सब कुछ हो जाऊं, मेरा अधिकार बड़ा हो, मेरी सत्ता बड़ी हो, मेरा अहंकार बड़ा हो, मेरा अहंकार सिंहासन पर बैठे, स्वर्ण सिंहासन पर बैठे । फिर ध्यान रखना कि जहां इतने लोग राजनीति में लगे हों, वहां सभी लोग स्वर्ण सिंहासनों पर तो बैठ नहीं सकते। तो जो बैठने में सफल हो जाते हैं, वे अहंकारी हो जाते हैं; और जो बैठने में हारते जाते हैं और सफल नहीं हो पाते, वे धीरे-धीरे हीनता की ग्रंथि से भर जाते हैं। तो कुछ बन जाते हैं मालिक और कुछ बन जाते हैं गुलाम | लेकिन आदमी मालिक बने तो विकृत हो जाता है, गुलाम बने तो विकृत हो जाता है, आदमी तो आदमी ही रहे तो सुंदर होता है। किसी के मालिक 113
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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