________________
जागरण ही ज्ञान
तुमने किसी का बुरा सोचा, अगर जाकर कह दिया कि ऐसा मेरे मन में भाव उठा, क्षमा चाहता हूं, तो छुटकारा हो गया। लेकिन तुमने यह न कहा, तुमने सोचा कि मैंने किसी को बताया भी तो नहीं है, किसी को पता भी नहीं है, अब कहने की भी क्या जरूरत है, तो यह तुम्हें कुरेदता रहेगा। यह भीतर कहता रहेगा कि देखो, तुम्हारे मन में ऐसा बुरा भाव उठा था और तुम स्वीकार करने की भी सामर्थ्य न जुटा सके। यह अधूरा-अधूरा लटका रहेगा। यह तुम्हारे संग-साथ हो जाएगा। इसकी एक पर्त बन जाएगी। __ ईसाइयों ने कनफेशन की बड़ी अदभुत प्रक्रिया खोजी, उसका मूल्य यही है। हर धर्म ने दुनिया में कुछ न कुछ बात दी है, विशेष बात दी है। ईसाइयों ने जो विशेष बात दी है, वह कनफेशन है। केथलिक धर्म ने जो बड़े से बड़ा अनुदान दिया है मनुष्य-जाति को, वह कनफेशन है, स्वीकार कर लेना। __ अंग्रेजी में कहावत है : टू एर इज ह्यूमन, भूल करना मानवीय है। तो कुछ आश्चर्य नहीं कि कभी चोरी कर ली हो, इसमें कुछ बहुत बड़ी बात नहीं हो गयी। मनुष्य चोरी करते हैं। मानवीय है। कभी ऐसी घड़ी आ जाती है, करनी ही पड़ती है। मानवीय है। अंग्रेजी की कहावत अच्छी है कि टू एर इज ह्यूमन, पर अधूरी है, आधी है। टू कनफेश इज डिवाइन, तब पूरी हो जाएगी। स्वीकार कर लेना दिव्य है। भूल करना मानवीय, स्वीकार कर लेना दिव्य। भूल कर ली तो घाव बन गया, स्वीकार कर लिया तो घाव खुल गया, मवाद बह गयी।
भूल कर ली और घाव को छिपाए-छिपाए फिरे, धूप न लगने दी, ताजी हवा न लगने दी, तो भरेगा नहीं। और मवाद बढ़ेगी और घाव धीरे-धीरे बड़ा होगा। नासूर हो जाएगा। कैंसर भी हो सकता है। खुला छोड़ो। मुक्त करो। मवाद को निकल जाने दो। धूप लगने दो, ताजी हवा लगने दो, सूरज की किरणों को खेलने दो उस घाव के ऊपर, ताकि भर जाए। भरने का मौका दो।
तो कृष्णप्रिया पूछती है कि 'अगर कल तक मैंने भी आपके आश्रम में किसी न किसी रूप में चोरी की हो और आज प्रबल भाव उठे...।'
तो प्रबल भाव उठता हो तो उसे पूरा करना। सौभाग्य है कि ऐसा भाव उठ रहा है। तब तो चोरी की, उससे भी लाभ ले लिया। अगर यह प्रबल भाव उठा और तुमने स्वीकार कर लिया, तो चोरी करने से जितनी भूल हुई, उससे कहीं बहुत ज्यादा लाभ स्वीकार करने से हो गया। चोरी करने से तो कुछ बड़ी भारी भूल नहीं हो गयी थी, ध्यान रहे, मानवीय है। ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है जिसने कभी न कभी, किसी न किसी कारण, किसी न किसी ढंग से चोरी न कर ली हो। लेकिन जिसने स्वीकार कर लिया, उसने चोरी की भी सीढ़ी बना ली। उसने चोरी को भी लिटा दिया मंदिर की सीढ़ी पर और उसके ऊपर चढ़कर मंदिर में प्रवेश कर गया। मार्ग का पत्थर सीढ़ी बन गया।
111