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________________ मन की मृत्यु का नाम मौन ऐसी भ्रांत धारणाएं साधना-पथ पर अनिवार्य रूप से आती हैं। अनाचरण छूटा तो आचरण पकड़ लेता है। धन छूटा तो ध्यान पकड़ लेता है। पाप छूटा तो पुण्य पकड़ लेता है। इधर कुआं, उधर खाई । भगवान ने उन्हें अपने पास बुलाया और पूछा, भिक्षुओ, क्या तुम्हारे संन्यस्त होने का उद्देश्य पूर्ण हो गया ? पूछना पड़ा होगा। क्योंकि देखा होगा, वे तो अकड़कर चलने लगे। देखा होगा कि वे तो ऐसे चलने लगे जैसे पा लिया, जैसे आ गए घर । तो बुलाया उन्हें और पूछा, क्या तुम्हारे संन्यस्त होने का उद्देश्य पूर्ण हो गया ? वे छिपाना तो चाहते थे, पर छिपा न सके। गुरु के सामने छिपाना असंभव है। वे आनाकानी करना चाहते थे, लेकिन कर नसके । बुद्ध ने कहा, भिक्षुओ, छिपाने की चेष्टा न करो, सीधी-सीधी बात कहो, संन्यस्त होने का लक्ष्य पूर्ण हो गया है क्या? क्योंकि तुम्हारी चाल्ल से ऐसा लगता है। तुम्हारी आंख से ऐसा लगता है कि तुम तो आ गए! उनके भाव स्पष्ट ही उनके चेहरों पर लिखे थे। उन्होंने झिझकते - झिझकते अपने मनों की बात कही, स्वीकार किया । भगवान ने उनसे कहा, भिक्षुओ, चरित्र पर्याप्त नहीं है। आवश्यक है, पर पर्याप्त नहीं | चरित्र से कुछ ज्यादा चाहिए। चरित्र तो निषेधात्मक है— चोरी नहीं की, झूठ नहीं बोले, बेईमानी नहीं की, हिंसा नहीं की, यह 'सब नकारात्मक है। विधायक कुछ चाहिए । चरित्र जरूरी है, पर्याप्त नहीं | चरित्र से कुछ ज्यादा चाहिए। सुनना इस बात को । चरित्र पर तुम अटक मत जाना । चरित्र तो बच्चों का खेल है । चरित्रवान होने में पुण्य कुछ भी नहीं है। पाप में तो बुराई है, पुण्य में कुछ भलाई नहीं है। तुम बहुत हैरान होओगे यह बात सुनकर। एक आदमी चोरी करता है, यह तो बुरी बात है। लेकिन एक आदमी चोरी नहीं करता, इसमें कौन सी खास बात है ! समझना इस बात को । चोरी न की, तो इसको भी कोई झंडा लेकर घोषणा करोगे कि हम चोरी नहीं करते हैं। यह भी कोई बात हुई ! चोरी न की, तो ठीक वही किया जो करना था, इसमें खास बात क्या है ? किसी की जेब न काटी, तो कोई गुण पा लिया ? जेब काटते तो बुराई जरूर थी, नहीं काटी तो कुछ खास भलाई नहीं हो गयी । एक आदमी अगर नकार पर ही जीने लगे तो चरित्र से जकड़ जाता है। धर्म विधायक की खोज है। नकारात्मक से बचना ठीक है, वह कमजोरी की बात है, मगर उतना कुछ खास नहीं है। अब तुमसे कोई पूछेगा कि तुम अपनी फेहरिश्त बनाओ, तुम उसमें बड़ी फेहरिश्त जोड़ सकते हो - सिगरेट नहीं पीते, पान नहीं खाते, चाय नहीं पीते, काफी नहीं पीते; यह सब चरित्र है। चोरी नहीं करते, बेईमानी नहीं करते, 95
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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