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________________ एस धम्मो सनंतनो पर-स्त्रीगमन नहीं करते; यह सब चरित्र है। मगर इसमें खूबी क्या है ? यह तो सहज ही मनुष्य का स्वभाव है, ऐसा होना नहीं चाहिए। __तो जो पाप करता है, वह मनुष्य होने से गिरता है। जो पाप नहीं करता, वह मनुष्य होने से ऊपर नहीं उठता। और धर्म तो वही है जो मनुष्य के ऊपर ले जाए, अतिक्रमण कराए। तो बुद्ध ने कहा, चरित्र से कुछ और ऊपर चाहिए। शील साधन है, साध्य नहीं। पाप और पुण्य दोनों ही बांधते हैं। भिक्षुओ, जब तक समस्त आस्रव क्षीण न हो जाएं और अंतराकाश में शून्य ही शेष न रह जाए, तब तक रुकना नहीं है। और आश्वस्त भी मत हो जाना और जल्दी मत ठहर जाना। पड़ावों को पड़ाव जानो। पड़ाव मंजिल नहीं है। और तब भगवान ने ये गाथाएं कहीं न सीलब्बतमत्तेन बाहुसच्चेन वा पन। अथवा समाधि लाभेन विवित्तसयनेन वा।।। फुसामि नेक्खम्मसुखं अपुथुञ्जनसेवितं। भिक्खु' विस्सासमापादि अप्पत्तो आसवक्खयं ।। 'न केवल शील और व्रत के आचरण से, न बहुश्रुत होने से, न समाधि-लाभ से और न ही एकांत में शयन करने से और न ऐसा सोचने से ही कि मैं सामान्यजनों द्वारा अप्राप्य निर्वाण के सुख का अनुभव कर रहा हूं, दुख समाप्त होता है। हे भिक्षु, (अपने निर्वाण-लाभ में) तब तक विश्वास मत करो, जब तक समस्त आस्रवों का क्षय न हो जाए। जब तक तुम्हारे चित्त में कोई भी चीज आती-जाती है, तब तक आस्रव। आस्रव का मतलब, आना-जाना। जब तक तुम्हारे चित्त में कोई भी तरंग उठती है, गिरती है, तब तक आस्रव। जब तक समस्त आना-जाना शांत न हो जाए-जब तुम्हारे चित्त में न कोई आए, न कोई जाए, सूना आकाश सूना ही बना रहे, फिर बदलियां कभी न घिरें और असाढ़ कभी न हो, तभी आश्वस्त होना, उसके पहले विश्वास मत कर लेना कि पहुंच गए। जरा सा समाधि-लाभ हुआ, जरा शांत बैठे, सुख आया, इससे समझ मत लेना कि आ गयी मंजिल। ___ इस परम मार्ग में बहुत बार ऐसे पड़ाव आते हैं जो बड़े सुंदर हैं, जहां रुक जाने का मन करेगा, जहां तुम सोचोगे कि आ गया घर, बस अब यहीं ठहर जाएं। मन सदा चालबाजी करता है। वह कहता है, बस, अब रुक जाओ, थक भी गए और काफी तो पहुंच गए, और क्या करना है! देखो, ब्रह्मचर्य भी हो गया, अब देखो लोभ भी नहीं रहा, अब देखो दान भी करने लगे हैं, अब देखो क्रोध भी नहीं आता
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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