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________________ एस धम्मो सनंतनो ही बना हुआ हूं। मेरे पीछे जो लोग आए, वे मुख्यमंत्री हो गए। असल में मुझ से ज्यादा दौड़-धूप नहीं होती। मैं आपके पास आया कि मुझे जरा ध्यान सिखा दें, कि जरा शांति मुझे आ जाए और बल आ जाए, तो मैं भी कुछ कर दिखाऊं! ___मैंने उनसे कहा, तुम भी अजीब बात कर रहे हो! ध्यान की पहली शर्त यह है कि महत्वाकांक्षा जाए और तुम ध्यान को भी महत्वाकांक्षा की सेवा में लगाना चाहते हो! तुम ध्यान को भी दासी बनाना चाहते महत्वाकांक्षा की! तुम कहीं और जाओ! यह न हो सकेगा! यह असंभव है। ____ अक्सर आदमी धन की दौड़ में थक जाता है तो कहता है, चलो जरा ध्यान सीख लें। तो शायद थकान थोड़ी कम होगी तो और ठीक से दौड़ सकेंगे। आदमी बड़ा अजीब है। आदमी को पता ही नहीं वह क्या मांगने लगता है! और फिर उसे देने वाले भी मिल जाते हैं! महर्षि महेश योगी लोगों को यही कह रहे हैं कि धन भी मिलेगा ध्यान से, पद भी मिलेगा ध्यान से, स्वास्थ्य भी मिलेगा ध्यान से, ध्यान से सब कुछ मिलेगा। पदोन्नति भी होगी ध्यान से! अगर तुमने ठीक से ध्यान किया तो पदोन्नति भी होगी। स्वभावतः, अगर अमरीका में उनका प्रभाव पड़ रहा है तो कुछ आश्चर्य नहीं। लोग महत्वाकांक्षी हैं, लोग यही चाहते हैं। जिन मंत्री की मैंने बात कही, उन्होंने भी मुझसे यही कहा कि आप यह कहते हैं कि कहीं और जाओ, मैं महर्षि महेश योगी के पास गया था तो उन्होंने तो कहा कि होगा, ध्यान करो। उन्होंने मंत्र दे दिया, मैं कर भी रहा हूं सालभर से, अभी तक कुछ हुआ नहीं, इसलिए आपके पास आया हूं। होगा ही नहीं। महत्वाकांक्षा के साथ ध्यान का संबंध ही नहीं जुड़ता। __उसको मुनि कहता हूं, बुद्ध ने कहा, जिसकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं-न इस लोक की, न परलोक की। संसार तो चाहता ही नहीं, मोक्ष की भी चाह छोड़ दी है जिसने, वही चुप होता है, वही मौन होता है, वही मुनि है। और अंतिम दृश्यः भगवान के जेतवन में रहते समय बहुत शीलसंपन्न भिक्षुओं के मन में ऐसे विचार हुए हम लोग शीलसंपन्न हैं, ध्यानी हैं, जब चाहेंगे तब निर्वाण प्राप्त कर लेंगे। ऐसी भ्रांत धारणाएं साधना-पथ पर अनिवार्य रूप से आती हैं। ___ जरा सा कुछ हुआ कि आदमी सोचता है, बस...किसी ने जरा सा ध्यान साध लिया, किसी ने जरा सच बोल लिया, किसी ने जरा दान कर दिया, किसी ने जरा वासना छोड़ दी कि वह सोचता है बस, मिल गयी कुंजी, अब क्या देर है, जब चाहेंगे तब निर्वाण उपलब्ध कर लेंगे। आदमी बड़ी जल्दी पड़ाव को मंजिल मान लेता है। जहां रातभर रुकना है और सुबह चल पड़ना है, सोचता है—आ गयी मंजिल। 94
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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