________________
एस धम्मो सनंतनो
हम इनके पीछे भटक रहे हैं। हम व्यर्थ ही परेशान हो रहे हैं।
तो वे बुद्ध के पास गए। उनका रोना दो कारणों से था। एक तो गरु मर गया। लेकिन उससे भी बड़ा कारण यह था कि हम भी किसके चक्कर में पड़े रहे! कुछ इसको मिला ही नहीं था।
भगवान ने कहा, भिक्षुओ, रोओ मत, तुम्हारा गुरु शुद्धावास में उत्पन्न हुआ है। परमशुद्धि में जागा है। भिक्षुओ, देखते हो, तुम्हारा उपाध्याय कामों से रहित चित्त वाला हो गया है, अब उसकी कोई कामना नहीं बची है, इसलिए लौटेगा नहीं।
कामना लौटा लाती है। कामना बार-बार खींच लेती है। कामना नीचे उतारती है। कामना ही अधोगमन है।
तुम्हारा गुरु ऊर्ध्वगामी हो गया है।
वह मुक्त हो मया पृथ्वी से। अब पृथ्वी में कोई कशिश उसे खींचने वाली नहीं । बची। अब वह उठता ही जाएगा शुद्धावास में।
जैनों के पास इसके लिए प्रतीक है, जैसे कि कोई लकड़ी के टुकड़े को मिट्टी से खूब लीप-पोतकर पानी में डाल दे, तो मिट्टी के वजन के कारण लकड़ी का टुकड़ा डूब जाएगा। फिर पानी की धार आती रहेगी, जाती रहेगी, मिट्टी गलती रहेगी, बहती रहेगी। एक घड़ी आएगी कि सारी मिट्टी बह जाएगी, फिर लकड़ी का टुकड़ा उठेगा, पानी की सतह पर आकर तैर जाएगा। ऐसा जैन कहते हैं, सिद्ध पुरुष संसार की सतह पर उठ जाते हैं, लोक की आखिरी सीमा पर पहुंच जाते हैं जहां अलोक शुरू होता है। उसी स्थिति को बौद्ध भाषा में कहते हैं-शुद्धावास, ब्रह्मलोक। ।
मनुष्य के पार हो गए, परमात्मा हो गए, अब लौटने का कोई कारण न रहा। मिट्टी की पकड़ न रही। जब तक तुम समझते हो मैं देह हूं, तब तक मिट्टी की तुम पर पकड़ है, तब तक तुम मिट्टी ही हो। जिस दिन तुमने समझा कि मैं देह नहीं हूं, उसी दिन मिट्टी की पकड़ छूटी। और धीरे-धीरे मिट्टी बह जाती है, तुम शुद्ध हो जाते हो। तुम्हारी चेतना ऊर्ध्वगामी हो जाती है। ऊपर उठने लगती है।
जाओ, खुशी मनाओ, तुम्हारा उपाध्याय कामना से मुक्त हो गया है, अनागामी हो गया है, बुद्ध ने कहा। तब शिष्यों ने कहा, पर उन्होंने मरते समय चुप्पी क्यों साधे रखी? हमें बताया क्यों नहीं? ___ उन्होंने तो बताया, चुप्पी से ही बताया। कुछ बातें चुप्पी से ही कही जाती हैं। कुछ बातें कहो तो खराब हो जाती हैं। कुछ बातें बिना कहे ही कही जाती हैं। मगर उसके लिए तो बड़ा संवेदनशील बोध चाहिए उसे समझने को, उस मौन को समझने को। उस इशारे को पहचानने के लिए तो बड़ी ध्यान की दशा चाहिए।
बुद्ध ने कहा, इसीलिए भिक्षुओ, इसीलिए, क्योंकि निर्मलचित्त को उपलब्धि का भाव नहीं होता है।
जहां उपलब्धि है, वहां उपलब्धि का भाव नहीं है। जहां परमात्मा से मिलन
86