________________
आदमी अकेला है
हुआ, वहां मिलन हो गया है, ऐसी बात भी व्यर्थ हो जाती है। जहां जान लिया, वहां क्या कहो कि जान लिया है! कहने में कुछ सार न रहा। शब्द तो वहीं तक हैं, वहीं तक कह पाते हैं, जहां तक शब्दों की सीमा है।
शब्द तो सत्य को कभी नहीं कह पाते हैं। ज्यादा से ज्यादा सत्य के संबंध में कुछ तुतलाते हैं, कह नहीं पाते। जैसे छोटे बच्चे तुतलाते हैं। कुछ कहना चाहते हैं, लेकिन तुतलाते हैं। मां को समझना पड़ता है कि क्या मतलब है उनका, मतलब लगाना पड़ता है। ऐसे ही शब्द हैं, सत्य के संबंध में तुतलाते हैं, कुछ कह नहीं पाते। ___बुद्ध ने कहा, इसीलिए भिक्षुओ, इसीलिए, क्योंकि जो उपलब्ध हो गया, उसे उपलब्धि का भाव नहीं होता है। वहां कोई बचा ही नहीं जिसको उपलब्धि का भाव हो। नहीं कोई बचा, इसी को तो शुद्ध अवस्था कहते हैं। जहां कोई मैं नहीं रहा, वहीं तो परम शुद्धि है। और तब उन्होंने यह अपूर्व सूत्र कहा
छंदजातो अनक्खातो मनसा च फुटो सिया। कामेसु च अप्पटिवद्धचित्तो उद्धसोतो ति बुच्चति।।
'अनख्यात में जिसका रस है, जिसके मन ने उस रस को छू लिया है—या उस रस ने जिसके मन को छ लिया है-और कामभोगों में जिसका चित्त अब बंधा नहीं है, वह ऊर्ध्वस्रोता कहा जाता है।'
तुम्हारा गुरु ऊर्ध्वस्रोता हो गया। समझो।
छंदजातो अनक्खातो...।
यह बड़ा प्यारा शब्द है। जो नहीं कहा जा सकता-अनख्यात है, जिसको कहने के लिए भाषा बनी नहीं है, जिसको कहने का कोई उपाय ही नहीं है, अनख्यात, अनिर्वचनीय-अनक्खातो छंदजातो; जिसे, जो नहीं कहा जा सकता, उसमें रस आ गया है। कोई उसे परमात्मा कहता है, कोई उसे निर्वाण कहता है, कोई उसे आत्मा कहता है, पर ये सब शब्द कामचलाऊ हैं। न तो वह परमात्मा शब्द में समाता है, न आत्मा शब्द में समाता है, न निर्वाण में, न मोक्ष में, सब शब्द छोटे पड़ जाते हैं। क्योंकि शब्दों की सीमा है, वह असीम है, विराट है। शब्द तो छोटे-छोटे आंगन हैं, वह तो पूरा आकाश है।
छंदजातो अनक्खातो...।
जिसे उस अव्याख्य में छंद हो गया, रस हो गया, जिसका हृदय तरंगित होने
87