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________________ आदमी अकेला है तो चुप रह जाने के सिवाय कोई उपाय नहीं है। चुप्पी कोई समझ ले तो समझ ले, न समझे तो उसकी वह जाने। इस वृद्ध स्थविर को साफ दिखायी पड़ रहा है कि अब लौटूंगा नहीं, यह परमदशा आ गयी है-अब तुम यह मत सोचना कि इसका पता कैसे चलेगा? जब परमदशा आती है तो पता चलेगा ही। जैसे अंधेरी रात में एकदम उजेला हो जाए तो पता नहीं चलेगा! सिर में दर्द होता है तो पता चलता है, दर्द चला जाता है तो पता चलता है। जीवनभर पीड़ा रही किसी न किसी तरह की, सारी पीड़ा चली गयी, सब तिरोहित हो गयी, एकदम परम आनंद की वर्षा होने लगी भीतर, तो पता नहीं चलेगा? अंधेरा था जन्मों-जन्मों का, सब कट गया, आखिरी पर्ते बची थीं वे भी टूट गयीं, आखिरी पर्दा भी उठ गया, तो इस स्थविर को साफ दिखायी पड़ रहा है कि क्या हो गया। लेकिन सोचा कि यह भी क्या कोई उपलब्धि है। दो कारणों से यह उपलब्धि नहीं है। पहली तो बात, उपलब्धि है अहंकार की भाषा। मैंने पा लिया, यह बात ही उस परम के संबंध में नहीं कही जा सकती। दूसरी बात, यह उपलब्धि नहीं कही जा सकती, क्योंकि यह हमारा स्वभाव है। यह हमने पा लिया, ऐसा थोड़े ही, यह तो सदा से था ही, हम भूल गए थे, बस स्मरण किया है। इसलिए भी इसको उपलब्धि नहीं कह सकते। जब बुद्ध को ज्ञान हुआ और किसी ने पूछा, क्या पाया? तो बुद्ध ने कहा, पाया कुछ भी नहीं, जो मिला ही था उसे जाना; जो था ही, जो सदा से था, हमने आंख न डाली थी अपने खजाने पर, बस इतनी ही भूल थी, खजाना तो था ही; इसलिए पाया, ऐसा कहना ठीक नहीं, प्रत्यभिज्ञा हुई, पहचान हुई, पहचाना, जाना। इसलिए भी इस परमस्थिति को उपलब्धि नहीं कहा जा सकता। तो वृद्ध स्थविर चुप ही रह गए। कुछ बोलना ठीक न लगा। कहें कि अनागामी हो गया है, अब नहीं आऊंगा, तो यह भी आने का एक उपाय हो जाएगा। क्योंकि फिर थोड़ा मैं अभी शेष रह गया। कहें कि बहुत कुछ पा लिया, पा लिया जो पाना था, तो भी अज्ञान की ही घोषणा होगी। ___ उपनिषद कहते हैं, जो कहे मैंने जान लिया, जानना कि नहीं जानता है। सुकरात ने कहा है कि जब मैंने जाना तो जाना कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं। तो यह वृद्ध स्थविर चुप रह गया। लेकिन चुप्पी को तो बहुत कम लोग समझ सकते हैं। शब्दों को ही कम लोग समझ पाते हैं, चुप्पी को तो कौन समझेगा! कहो-कहो तब नहीं सुन पाते हैं, तो बिना कही बात तो कौन सुनेगा! भिक्षु तो बड़े उदास हो गए। और गुरु ऐसे ही मर रहा है खाली हाथ, कुछ भी नहीं बता रहा है कि कुछ मिला कि नहीं मिला, चित्त में बड़ी तकलीफ भी हुई होगी। मौत की तो तकलीफ हुई ही हुई—गुरु मर रहा है साथ में यह भी तकलीफ हुई होगी कि ऐसे आदमी के शिष्य होकर हमको क्या होगा? यह तो मर गए और बिना कुछ पाए मर गए और
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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