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एस धम्मो सनंतनो फिर कहीं गांठ खुल न जाए तो भय पैदा होता है। फिर कहीं गांठ खुल जाए तो दुख पैदा होता है। एक-दूसरे के पीछे चीजें चलती हैं। तुम एक कदम गलत दिशा में उठाओ, तो दूसरा कदम अपने आप उठ जाता है।
मैंने सुना है, एक धर्मात्मा यहूदी गृहस्थ का नियम था कि हर शुक्रवार को शाम को वे किसी भिक्षुक को शब्बाथ बिताने के लिए अपने घर लाते थे। एक बार जब वे सज्जन अपने मुहल्ले के सिनागाग से एक भिक्षुक को लेकर घर की ओर चले, तो उन्होंने देखा कि भिक्षुक के पीछे-पीछे एक और फटेहाल आदमी भी चला आ रहा है, और उसके पीछे एक और फटेहाल आदमी चला आ रहा है। उस गहस्थ ने उस आदमी के बारे में पूछा तो भिक्षु ने कहा, महाशय, वह मेरा दामाद है। और मैं उसका पालन-पोषण करता हूं। खुद भिखारी हैं! वह उनके दामाद आ रहे हैं पीछे।
और उन्होंने कहा उनके पीछे कौन चले आ रहे हैं? वह बोला कि मेरे दामाद का बेटा है। उसके पालन-पोषण का जिम्मा उसके ऊपर है। __ ऐसी कतारें बनती हैं। तुम एक को बुलाकर लाए तो तुम एक को बुलाकर नहीं लाए, एक के पीछे दूसरा आता होगा! दूसरे के पीछे तीसरा आता होगा। तुमने एक को बुलाने के लिए द्वार खोला कि तुमने सारे संसार को बुला लिया। तुमने एक कदम उठाया गलत दिशा में कि हजार कदम उठ गए।
तो बुद्ध कहते हैं, प्रिय मत बनाना, तो फिर भय भी न होगा, शोक भी न होगा; और अगर प्रिय न बनाया तो जो ऊर्जा प्रेय की दिशा में जाती थी, वह श्रेय की दिशा में जाएगी और तुम जो अमृत के पार है, उसका अनुभव कर सकोगे। अमृत का स्वाद तुम्हारे कंठ में आ जाए, फिर कैसा भय, फिर कैसा शोक!
'तृष्णा से शोक उत्पन्न होता है, तृष्णा से भय उत्पन्न होता है। तृष्णा से मुक्त पुरुष को शोक नहीं है, फिर भय कहां?'
सिर चढ़ी धूल है शायद तुम्हें मालूम न हो एक हसीं भूल है शायद तुम्हें मालूम न हो फूल खिलते हैं जो पत्थर की हथेली पर अलभ्य हम वही फूल हैं शायद तुम्हें मालूम न हो तुम तो सागर हो बरसती हैं घटाएं तुम पर तृष्णा लघुकूल है शायद तुम्हें मालूम न हो
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