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आदमी अकेला है
आदमी बूढ़ा होता जाता है। कोरे कागज की तरह आते हैं छोटे बच्चे और फिर लकीरों पर लकीरें दुख की लिखी जाती हैं। हमारा जीवन दुख की एक कथा है।। - हम यह दुख कैसे लिखते हैं ? सारे दुखों के मूल में मृत्यु है। जहां भी हमें मृत्यु का भय लगता है, वहीं समझ लेना कि अभी हम दुख की सीमा के भीतर हैं। जिस दिन तुम यह जान लोगे कि तुम्हारे भीतर कुछ है जो मृत्यु नहीं मिटा सकेगी, चिता नहीं जला सकेगी: जिसे शस्त्र छेद नहीं पाते-कृष्ण ने कहा है : नैनं छिंदंति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः। और जिसे अग्नि नहीं जलाती, और जिसे शस्त्र नहीं छेदते हैं, जब तक तुम उसे न जान लोगे, तब तक भय। और जब तक भय, तब तक शोक। ___ तो बुद्ध ने कहा, खोज अमृत को। और अमृत की खोज में जाना हो तो प्रेय से हटो, श्रेय की तलाश करो। "प्रिय से शोक उत्पन्न होता है।'
बुद्ध यह कह रहे हैं कि बेटे की मृत्यु के कारण ही तू दुखी नहीं है, तूने उसे बेटा माना इसलिए दुखी है।
इस बात को समझना। मैंने सुना है, एक घर में आग लगी। घर का मालिक रोने लगा, चिल्लाने लगा, छाती पीटने लगा। जीवनभर की कमाई जली जाती थी, भयंकर लपटें थीं, बुझने का कोई उपाय न था। तभी एक आदमी भागा आया, उसने कहा, तुम व्यर्थ रो रहे हो, कल सांझ मैंने तुम्हारे बेटे को बात करते सुना, मकान उसने बेच दिया है। वह आदमी बोला, सच! उसके आधे बहते आंसू सूख गए। मकान अब भी जल रहा है। मगर अब अपना नहीं है, तो बात खतम हो गयी। .
लेकिन तभी बेटा भागा हुआ आया, उसने कहा कि बात ही चली थी, बयाना भी नहीं हुआ है, सौदा तो टूट ही गया समझो। फिर बाप रोने लगा। अभी भी मकान वही का वही है, लेकिन अब फिर अपना हो गया है। . जैसे ही कोई चीज मेरी होती है वैसे ही पीड़ा, और जैसे ही मेरी नहीं रही, बात समाप्त हो गयी। तुम्हारा बेटा मर जाए तो तुम दुखी हो रहे हो, मृत्यु के कारण नहीं, मेरा था। तुम बेटे को जलाकर घर लौटो और घर तुम्हें कुछ ऐसे कागज-पत्तर मिल जाएं जिनसे पता चले कि तुम्हारी पत्नी ने तुमसे धोखा किया था, यह बेटा तुम्हारा था ही नहीं। बस, सब मामला खतम। न केवल मामला खतम, तुम पत्नी को मारने को उतारू हो जाओ। यह बेटे की मौत तो एक तरफ, यह तो बात ही, तुम तो सोचने लगो-अच्छा ही हुआ, यह झंझट मिटी। मेरा-तेरा शोक का जन्मदाता है। __ तो बुद्ध ने कहा, 'प्रिय से शोक उत्पन्न होता है, प्रिय से भय उत्पन्न होता है। प्रिय से मुक्त पुरुष को शोक नहीं, फिर भय कहां?'
एक-दूसरे के पीछे चलती हैं चीजें। मेरा की गांठ बांध ली प्रेय की तलाश में,