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आदमी अकेला है
नहीं, इसलिए भागने का कोई सवाल नहीं है। दो व्यक्तियों के बीच में जो संबंध का सेतु होता है, कड़ी होती है, वह भर गिरा दो। पत्नी के ही साथ रहो, लेकिन अब पति होकर नहीं। पति का भाव जाने दो। बेटे के साथ रहो, लेकिन बाप होकर नहीं। बाप का भाव जाने दो। वह तो सिर्फ भाव ही हैं। पानी के बबूले हैं और कुछ भी नहीं। फूंक मारे से उड़ जाते हैं। जरा से बोध की चोट से टूट जाते हैं। इंद्रधनुषों जैसे हैं—दिखायी पड़ते हैं बहुत रंगीन, पास जाओ तो हाथ में कुछ भी नहीं आता। इन बबूलों को गिर जाने दो। रहो साथ, मगर संग न बनाओ।
साथ रहो और अगर संग न बने, तो न फिर दुख होता है प्रिय के मिलन से, बिछड़ने से, न अप्रिय के मिलन से, न अप्रिय के बिछड़ने से। फिर तुम सभी स्थितियों को स्वीकार करने में कुशल हो जाते हो। प्रिय आए तो ठीक, अप्रिय आए तो ठीक। तुम हर हालत में राजी होते हो। तुम्हारी कोई आकांक्षा नहीं होती कि ऐसा ही हो तभी मैं सुखी होऊंगा। और जब तुम्हारी ऐसी कोई शर्त नहीं होती, तब तुम्हारे सुख का क्या कहना! तब तुम्हारा सुख महासुख हो जाता है। तब सभी कारणों के पार, सभी शर्तों के पार तुम सुखी होते हो, सुख तुम्हारा स्वभाव हो जाता है।
स्वामी रामतीर्थ सदा कहा करते थे, यूनान के बहुत बड़े वैज्ञानिक आर्किमिडीज ने कहा था कि यदि मुझे कोई स्थिर आधार, खड़े होने को कोई स्थल मिल जाए, तो मैं दुनिया को हिला सकता हूं। आर्किमिडीज कहता था कि अगर मुझे कुछ ऐसा एक छोटा सा बिंदु भी मिल जाए जो स्थिर है, स्थिर बिंदु, जो हिलता नहीं, तो मैं उस पर खड़े होकर सारी दुनिया को हिला सकता हूं। किंतु वह बेचारा ऐसा स्थिर बिंदु न पा सका, क्योंकि संसार में ऐसा कोई स्थिर बिंदु है ही नहीं। स्थिर बिंदु तुम्हारे भीतर है, बाहर नहीं, वह है तुम्हारी आत्मा। उसे पकड़ो और सारा संसार तुम चलाने लगोगे। अभी तो संसार तुम्हें चलाता है। अभी तो तुम परिस्थितियों के दास हो। अभी तो जरा सी बात बाहर घटती है और तुम कंप जाते हो। अभी तो कोई भी चीज तुम्हें सुखी और दुखी कर जाती है। अभी तुम अपने मालिक नहीं हो। ___तो स्वामी रामतीर्थ कहते थे और ठीक कहते थे कि अगर तुम बाहर कोई ऐसा स्थिर बिंदु खोजने चले हो तो कहीं भी न मिलेगा। ऐसी खोज का नाम ही संसार है-बाहर कोई स्थिर बिंदु मिल जाए जिसमें सुरक्षा हो, जहां मैं विश्राम कर सकू।
नहीं, ऐसा कोई स्थिर बिंदु है ही नहीं बाहर। लेकिन भीतर एक स्थिर बिंदु है, जहां तुम परम विश्राम को उपलब्ध हो सकते हो। और जहां पहुंच गए व्यक्ति को कोई डिगा नहीं सकता। और जहां पहुंचा हुआ व्यक्ति चाहे, तो उसके इशारे से सारी दुनिया कंपती है।
वास्तव में कर्ता भी तुम्हीं हो
और कर्म भी तुम्ही तुम्ही आत्मा हो
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