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एस धम्मो सनंतनो
और तुम्ही नाममात्र अनात्मा हो तुम्ही सुंदर गुलाब हो
और प्रेमी बुलबुल भी तुम्ही हो। तुम फूल हो
और भौंरा भी तुम हर एक चीज तुम होभूत और प्रेत देवता और देवदूत पापी और महात्मा
सब तुम्ही हो। यह है संन्यास का मार्ग। इस बात को जानना कि मेरा संसार मेरे भीतर है, यह है संन्यास का मार्ग। इस बात को जानना कि मेरा सुख मेरे बाहर है, यह है संसार का मार्ग। अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, ऐसा करने से तुम गिर पड़ोगे। अपना पूर्ण विश्वास अपने में जगाओ, अपने केंद्र में बने रहो, फिर तुम्हें कोई भी चीज हिला न सकेगी।
जब बुद्ध कह रहे हैं कि संग-साथ में बहुत अपने को न डुबाए, वे इतना ही कह रहे हैं कि अपने केंद्र तुम स्वयं बनो।
तीसरा सूत्र
तस्मा पियं न कयिराथ पियापायो हि पापको। गंथा तेसं न विज्जन्ति येसं नत्थि पियाप्पियं।।
'इसलिए किसी को अपना प्रिय न बनाओ। प्रिय से वियोग दुखद होता है। और जिनके प्रिय और अप्रिय नहीं होते, वे निग्रंथ होते हैं।' __ यह निग्रंथ की परिभाषा समझो। जैन महावोर को निग्रंथ कहते हैं। निग्रंथ बड़ा अनूठा शब्द है। ऐसे तो सीधा-साफ-सुथरा है। निग्रंथ का अर्थ होता है, जिसकी कोई ग्रंथि नहीं, जिसकी कोई गांठ नहीं। हम कहते हैं न, दो आदमियों का विवाह हो गया, कहते हैं-गांठ बंध गयी, ग्रंथि पड़ गयी। सात चक्कर लगाकर सात गांठे डाल देते हैं। खोलना ही मुश्किल कर देते हैं। निग्रंथ का अर्थ होता है, जिसकी अब कोई गांठ नहीं, कोई ग्रंथि नहीं, जो कहीं बंधा नहीं है, जो अपने में है। जिसका होना अपने में है, जिसका होना बाहर नहीं है।
तुमने बच्चों की कहानियां पढ़ी होंगी। बच्चों की कहानियों में आता है कि कोई राजा था, उसके प्राण एक तोते में बंद थे। तो राजा को मारो तो नहीं मरता था, जब तक कि तुम तोते की गर्दन न मरोड़ो। तोते की गर्दन मरोड़ो, राजा फौरन मर जाता
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