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________________ एस धम्मो सनंतनो कभी तुम किसी बात से, किसी कारण से किसी के प्रेम में पड़ गए। वह कारण हट जाएगा, फिर? फिर क्या करोगे? और कारण न भी हटे, तो भी जो चीज तुम्हें प्रीतिकर मालूम पड़ती है जब दूर होती है, पास आने पर, मिल जाने पर उतनी प्रीतिकर मालूम होगी ? अपनी पत्नी किसी को सुंदर मालूम होती ? अपना पति किसी को सुंदर मालूम होता ? सौंदर्य दूर से मालूम होता है। सौंदर्य जो उपलब्ध नहीं है, उसमें मालूम होता है। सौंदर्य का अधिकतम प्रभाव तो जितना कठिन हो पाना, उसमें होता है । जितना सरल हो जाए, उतना ही सौंदर्य समाप्त हो जाता है। अंगर कोई स्त्री बहुत दुर्लभ हो कि मिल ही न सके, तो उसका सौंदर्य सदा बना रहेगा। मिल गयी कि सौंदर्य समाप्त हो गया। करोगे क्या ? कितनी ही सुंदर नाक हो और कितनी ही सुंदर आंख हो, करोगे क्या ? दो-चार दिन में सब भूल जाओगे । जो चीज कारण कर निर्भर है, वह टूटेगी। तो यहां प्रिय का मिलन भी होगा, प्रिय का बिछुड़ना भी होगा, यहां प्रेम की घटना भी घटेगी और फिर प्रेम खट्टा होकर अप्रेम भी बनेगा । इसलिए प्रेम सब तरह से दुख देता है। प्रेम रहे तो दुख देता है, फिर प्रेम छूट जाए तो दुख देता है । फिर अप्रिय मिल जाए तो कठिनाई हो जाती है। तो बुद्ध कहते हैं— मा पियेहि समागञ्छि अप्पियेहि कुदाचनं । 'प्रियों का संग न करे, न कभी अप्रियों का संग करे।' इसका क्या अर्थ हुआ? क्या किसी का संग ही न करोगे ? प्रियों का देखना दुखद, अप्रियों का देखना दुखद, तो क्या फिर किसी के साथ ही कभी खड़े न होओगे? तो बौद्ध भिक्षु भी तो एक-दूसरे के साथ थे ! खुद बुद्ध भी तो हजारों भिक्षुओं के साथ थे ! नहीं, बुद्ध के कहने का इतना ही तात्पर्य है कि बीच में प्रेम के संबंध खड़े मत करना। साथ रहो, संबंध के सेतु मत जोड़ो। तुम अलग, दूसरा अलग। तुम अपने एकांत में शिखर, वह अपने एकांत में शिखर । एकांत पर हमला मत करो, एकांत पर हावी मत होओ, एक-दूसरे के एकांत को नष्ट मत करो। एक-दूसरे के मालिक मत बनो और न एक-दूसरे को अपना मालिक बनाओ। मुक्त रहो। साथ रहो तो भी संग न बनाओ। यही मेरी देशना है। इसलिए मैं तुमसे यह भी नहीं कहता कि घर भी छोड़ो। मैं कहता हूं, घर छोड़कर भी कहां जाओगे, आश्रम में रहोगे तो आश्रम घर बन जाएगा। घर से भागने का उपाय क्या है, कहीं तो रहोगे ! वहीं घर बन जाएगा। जहां रहोगे, उसका नाम घर है। पत्नी को छोड़कर भाग जाओगे, बेटे को छोड़कर भाग जाओगे, किसी के साथ तो रहोगे! उसी से संबंध बन जाएंगे लगाव के । 72
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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