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________________ आदमी अकेला है 'प्रियों का संग न करे', बुद्ध ने कहा, 'न कभी अप्रियों का ही संग करे। प्रियों का न देखना दुखद है, और अप्रियों का देखना दुखद है।' बुद्ध ने कहा, दुख के दो कारण हैं। प्रिय से मिलन न हो तो दुख होता है, अप्रिय से मिलन हो जाए तो दुख होता है। प्रिय छूट जाए तो दुख हो जाता है, अप्रिय मिल जाए तो दुख हो जाता है। लेकिन दुख का मूल कारण तो यही है कि तुमने प्रेम का संबंध बनाया। दोनों प्रेम के संबंध हैं—प्रिय का और अप्रिय का। और कभी-कभी ऐसा होता है कि दोनों बातें एक के साथ ही घट जाएंगी। __ तुमने कभी देखा है, बचपन का बिछड़ा हुआ मित्र वापस आ गया है मिलने, बड़े तुम खुश हुए, गले से लगा लिया, उठा लिया। एक दिन खुशी रही, वह घर टिक ही गया बोरिया-बिस्तर जमाकर, दूसरे दिन जरा बेचैनी होने लगी, तीसरे दिन पत्नी नाराज होने लगी कि हटाओ भी, यह कहां के आदमी को बिठा रखा है, चौथे दिन बच्चे भी परेशान होने लगे, पांचवें दिन तुम भी प्रार्थना करने लगे भगवान से कि अब इन सज्जन को विदा करो। अगर महीने दो महीने यह मित्र रुक जाए और फिर तुम सफल हो जाओ इसको विदा करवाने में, तो तुम जितने प्रसन्न होओगे, उतने प्रसन्न तुम इसके मिलने पर भी नहीं हुए थे। यह वही का वही है; कुछ फर्क नहीं पड़ा है, तुम वही के वही हो, यह मित्र भी वही का वही है, लेकिन क्या हो गया! एक ही संबंध प्रेम का अप्रेम का भी बन जाता है। - प्रेम और अप्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। और बुद्ध कहते हैं, दोनों से दुख मिलता है। प्रिय बिछुड़े तो दुख होता है और बिछुड़ना तो होगा ही, क्योंकि यहां मौत सबको अलग कर देगी। जन्म के पहले हम सब अलग थे। जन्म ने इकट्ठा कर दिया, मौत अलग कर देगी। नदी-नाव संयोग। राह पर चलते यात्री मिल गए हैं। तीर्थयात्रा को गए थे, राह पर बातचीत हो गयी, मिल गए, संबंध बन गया, फिर बिछुड़ जाएंगे। सांझ को पक्षी एक वृक्ष पर आकर बैठ गए हैं, मिलन हो गया है, रातभर साथ रहेगा डेरा, सुबह फिर उड़ जाएंगे। जन्म ने मिला दिया है, मृत्यु फिर विदा कर देगी। तो विदा तो होना ही होगा आज नहीं कल। फिर और बहुत से कारण हैं जिन्होंने मिला दिया है। कोई स्त्री सुंदर है, उसके सौंदर्य के कारण तुम प्रेम में पड़ गए हो, लेकिन सौंदर्य टिकता थोड़े ही है। थोड़े दिनों बाद सौंदर्य तिरोहित हो जाएगा। ___ मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उससे पूछ रही थी कि क्या मैं बढ़ी हो जाऊंगी तब भी तुम मुझे प्रेम करोगे? मुल्ला पहले तो अखबार पढ़ रहा था, तो उसने ठीक से सुना नहीं, उसने टालने को कहा, हां-हां, जरूर, क्यों नहीं! तब उसे खयाल आया कि वह क्या कह रहा है। तो उसने पूछा कि तुम अपनी मां जैसी तो नहीं लगने लगोगी? अन्यथा मैं पहले ही से कहे देता हूं कि फिर मुझसे न हो सकेगा प्रेम इत्यादि। 71
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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