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एस धम्मो सनंतनो
अभी हुआ, एक युवती जर्मनी से आयी, संन्यस्त हो गयी, उसके घर के लोग परेशान थे। एक तो संन्यास उनकी समझ में ही न आए कि बात क्या है ? पश्चिम में यह शब्द तो बहुत उलझन भरा है। यह हुआ क्या! बाप भागा हुआ आया। चार दिन यहां अपनी बेटी को समझाता-बुझाता रहा, लेकिन बेटी जाने को राजी न हुई। तो फिर वह बेटी को लेकर मेरे पास आया। सोचा शायद मैं समझा दूंगा। दो-चार दिन उसने मेरी बातें भी सुनी, फिर सांझ के दर्शन में आया। तो दूसरों से जो मैं बातें कर रहा था वह उसने सुना, फिर तो यह बात उसे पूछने जैसी ही न लगी। यह बात ही उसे न जंची कि अब वह पूछे कि इस लड़की को वापस ले जाना है। वह कहने लगा कि मैं फिर आऊंगा। संन्यास ने मेरे मन को भी लुभा लिया है, आया तो मैं अपनी लड़की को लेने था, लेकिन मैं खुद पकड़ा गया हूं। ध्यान में डुबकी मैं भी लगाना चाहूंगा। अभी तो मुझे लौटना पड़ेगा, इसकी मां परेशान हो रही है, यह कालेज से भाग आयी है, परीक्षा करीब आ रही है, कालेज के अधिकारी परेशान हो रहे हैं, अभी तो मैं जाऊं।
तो मैंने उस युवती को कहा कि तू भी वापस जा, र के लोग सब शांत हो जाएंगे, सौभाग्यशाली है तू कि तुझे ऐसा पिता मिला, तू जा!
युवती साथ चली गयी, लेकिन पिता का हृदय यहां छूट गया है। युवती तो लौट ही आएगी, पिता भी लौट आएगा। संयोग से ही आना हुआ, कोई कारण न था आने का। शायद अगर उसकी बेटी भागकर न आयी होती तो पिता कभी आता ही नहीं, लेकिन स्पृहा पैदा हो गयी। यहां देखा लोगों को नाचते, तो उसने मुझसे पूछा कि मैं तो कभी नाचा नहीं! लोगों को प्रसन्न देखा, तो उसने पूछा कि इतने प्रसन्न लोग हो सकते हैं, यह मुझे भरोसा नहीं!
संयोग से आया हुआ आदमी भी कभी-कभी नाव में सवार हो जाता है, समझदारी हो तो। और कभी-कभी ऐसा होता है कि समझदारी न हो, तो तुम चेष्टा करके आए हो तो भी चूक जाओगे। __ वैसे लोग भी आ जाते हैं। संन्यास ही लेने आते हैं, लेकिन फिर कोई छोटी-मोटी बात अड़चन बन जाती है। उतनी सी अड़चन से लौट जाते हैं। आदमी पर निर्भर है। आदमी की गुणवत्ता पर निर्भर है।
शुभ होना तो शुभ है ही, कम से कम शुभ की स्पृहा तो करो। अगर आज शुभ नहीं हो सकते तो इतना तो सोचो, इतना सपना तो संजोओ, इतना सपना तो देखो कि कभी शुभ हो सकू। और जिनको शुभ घटित हुआ है, उनके साथ थोड़ा सा खयाल तो करो कि यह भी हो सकता है; और जो इन्हें हुआ है, वह मुझे भी हो सकता है।
मा पियेहि समागञ्छि अप्पियेहि कुदाचनं। पियानं अदस्सनं दुक्खं अप्पियानञ्च दस्सनं ।।
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