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________________ आदमी अकेला है तब बुद्ध ने ये पहली तीन गाथाएं कहीं। ये गाथाएं अपूर्व हैं अयोगे युञ्जमत्तानं योगस्मिञ्च अयोजयं। अत्थं हित्वा पियग्गाही पिहेतत्तानुयोगिनं ।। 'अयोग्य कर्म में लगा हुआ, योग्य कर्म में न लगने वाला तथा श्रेय को छोड़कर प्रिय को ग्रहण करने वाला मनुष्य, आत्मानुयोगी पुरुष की स्पृहा करे।' पहली गाथा। बुद्ध कहते हैं, जो अयोग्य कर्म में लगा है और योग्य कर्म में नहीं लगा है। स्वभावतः जब तुम्हारी ऊर्जा अयोग्य में लगी होगी तो योग्य में कैसे लगेगी? अयोग्य से छूटेगी तो योग्य में लगेगी। गलत दिशा में जाता आदमी एक ही साथ ठीक दिशा में तो नहीं जा सकता। जो गलत दिशा में जा रहा है, वह ठीक दिशा में तो नहीं जा सकता। और जिसे ठीक दिशा में जाना है, उसे गलत दिशा में जाना बंद करना होगा। .. 'अयोग्य कर्म में लगा हुआ, योग्य कर्म में न लगने वाला तथा श्रेय को छोड़कर प्रिय को ग्रहण करने वाला मनुष्य, आत्मानुयोगी पुरुष की स्पृहा करे।' । ये दो बातें श्रेय और प्रेय समझने की हैं। . प्रेय का अर्थ होता है, जो प्रिय है मुझे उसे पा लं। लेकिन अभी तम अंधेरे में खड़े हो, तुम्हें जो प्रिय भी लगता है, वह भी तुम्हारे अंधेरे की ही उपज है। अभी तुम रुग्ण हो, तुम्हें जो प्रिय भी लगता है, वह भी तुम्हारे रोग का ही हिस्सा है। अभी तुम अंधे हो, वह जो तुम्हें प्रिय भी लगता है, वह तुम्हारे अंधेपन से ही पैदा हो रहा है। इसलिए प्रेय में अगर लग गए, प्रिय में अगर लग गए, तो भटकते ही चले जाओगे। पहले श्रेय को साधो। श्रेय का अर्थ होता है, स्वयं को रूपांतरित करो। जिस आदमी की आंखें जमीन पर गड़ी हैं, वह अगर चुनाव भी कर ले कि कौन सी चीज प्रिय है, तो भी चीज तो • जमीन की ही रहेगी। चलो, कंकड़-पत्थर नहीं बीनेगा तो हीरे-जवाहरात बीन लेगा। लेकिन हीरे-जवाहरात भी वस्तुतः तो कंकड़-पत्थर हैं। हीरे-जवाहरात तो हमने उन्हें बना दिया। अगर आदमी न हो तो कौन हीरा है और कौन पत्थर है! आदमी के कारण कुछ पत्थर हीरे हो गए हैं। मगर आदमी हट जाए तो सब पत्थर हैं, हीरा भी पत्थर है, पत्थर भी पत्थर हैं। उनमें कोई फर्क न रहेगा। हीरों को पता ही नहीं है कि वे हीरे हैं। और पता हो जाए तो आदमी पर वे बहुत हंसें, क्योंकि वे जानते हैं कि पत्थर ही हैं। आदमी ने भेद कर लिया है, यह प्रिय है, उसको ऊंचा बना लिया है। लेकिन इस तरह अगर प्रेय का कोई चुनाव करता रहे जमीन पर आंख गड़ाए, तो चांद-तारों को कभी भी न पा सकेगा। श्रेय का अर्थ होता है, पहले आंखें उठाओ, पहले अपने को उठाओ। श्रेय का अर्थ होता है, पहले शुभ बनो। श्रेय का अर्थ होता 67
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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