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________________ आदमी अकेला है सनने न जाते-उन्हें लेना-देना क्या था। ___ भिक्षु और भिक्षुणियां उनसे परेशान होने लगे। यह कुछ अजीब सा ही जमघट हो गया इन तीन का! इन्होंने तो एक परिवार बना लिया वहां। आखिर बात बुद्ध तक पहुंची। बुद्ध ने उन्हें बुलाया और उनसे पूछा...देखा बुद्ध ने, सारी बात साफ हो गयी। बेटा सिर्फ भागने के लिए संन्यास ले लिया, घर में स्वतंत्रता न थी।। सभी बेटे स्वतंत्रता चाहते हैं। किसी भी भांति स्वतंत्रता चाहिए। तो संन्यास ले लिया था कि इस भांति मुक्त हो जाएगा। बाप और मां सिर्फ बेटे के पास ही बने रहें, यह साथ कभी छूटे न, इस मोह में संन्यस्त हो गए। बुद्ध ने उनसे पूछा कि यह क्या कर रहे हो! यह कैसा संन्यास! संन्यास का अर्थ ही होता है, अपने अकेलेपन में रस, दूसरे में रस का त्याग। अब इस बात को समझना। दूसरे में रस के त्याग का अर्थ होता है, दूसरे में विरसता का भी त्याग। जब तक तुम्हारा दूसरे में रस है, या विरस; जब तक तुम्हारा दूसरे में लगाव है, या दुराव; जब तक दूसरे में मोह है, या दूसरे में क्रोध; तब तक तुम दूसरे से बंधे हो। इसलिए तुम्हारे बहुत से संन्यासी जो घरों को छोड़कर भाग गए हैं, वस्तुतः संन्यस्त नहीं हो पाए हैं। घरों से छोड़कर भाग गए होंगे, संन्यास नहीं घटित हुआ है। उनका विरस हो गया है। घर से वे परेशान हो गए हैं। पत्नी से परेशान, बच्चों से परेशान, क्रोध में चले गए हैं, किसी बोध में नहीं। - अगर बोध में गए हों तो जाने की जरूरत क्या है? क्रोध में ही आदमी भागता है, या भय में भागता है। बोध में तो भागने की जरूरत नहीं, बोध में तो थिर हो जाता है। बोध में तो जहां है वहीं ज्योतिर्मय हो जाता है। बोध में तो जहां है वहीं चिन्मय की वर्षा हो जाती है। बोध में फिर क्या पहाड़ और क्या बाजार, क्या घर और क्या मंदिर, सब बराबर है। ___ भगोड़ों में रस तो नहीं है, विरस है। पर विरस भी तो रस का ही रूप है। जैसे • दूध फट गया, ऐसा विरस है—रस फट गया लेकिन है दूध का ही रूपांतरण। जैसे कोई चीज रखी-रखी बासी होकर खट्टी हो गयी। मगर है तो उसी का रूपांतरण। __इसलिए संन्यास को तुम त्याग मत समझना। संन्यास न तो भोग है और न त्याग है। फिर संन्यास क्या है? संन्यास इस बात का बोध है कि न तो दूसरे से कुछ मिला है, न मिल सकता है। नाराजगी का भी कोई कारण नहीं। क्योंकि नाराजगी का तो अर्थ ही यह होता है कि अभी भी यह बात मन में बनी है कि मिल सकता था और नहीं मिला। नाराजगी का क्या अर्थ होता है? तुम अगर अपनी पत्नी पर नाराज हो तो तुम यह कह रहे हो कि यह गलत पत्नी मिल गयी है, अगर ठीक पत्नी मिलती तो हम सुखी हो जाते। तुम अगर बेटे से नाराज हो, तो तुम यह कह रहे हो कि कहां का बेटा घर में पैदा हो गया है, कुपुत्र पैदा हो गया है, सुपुत्र होता तो हृदय में बड़ी 44
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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