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________________ आत्मबोध ही एकमात्र स्वास्थ्य आप अब जानते हैं कि सभी ज्ञानी हो गए, तो आप समझाते क्या हैं? तो बुद्ध कहते हैं, यही समझाता हूं कि लोग अपने को अज्ञानी माने बैठे हैं, मैं उनको यही समझाता हूं कि अज्ञानी तुम नहीं हो, ज्ञानी हो। मुझे कुछ समझाने को नहीं बचा है, मेरे लिए तो बात साफ हो गयी कि सब ज्ञानी हैं। मगर वे जो ज्ञानी हैं, वे अपने को अज्ञानी माने बैठे हैं। उनकी मान्यता तोड़नी है। लेकिन जब परम अवस्था घटती है, तब भी कुछ लोग गांठ बांधे रहे जाते हैं। उनसे भी कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए सारे धर्मों ने दो भेद किए हैं। जैनों ने भेद किया है, एक को वे कहते हैं—केवली जिन। जिसने जान लिया, जिनत्व को उपलब्ध हो गया, समाधि को परिपूर्ण पा लिया, लेकिन चुप्पी साधकर रह गया, फिर कुछ बोला नहीं। उसको कहते हैं-केवली जिन। वह केवलत्व को उपलब्ध हो गया, बस, गया शून्य में, महाशून्य में चला गया। दूसरे को कहते हैं-तीर्थंकर। तीर्थंकर का अर्थ है, जो खुद पाया और फिर दूसरों के लिए घाट बनाने लगा कि यहां से तुम भी उतरो। तीर्थ यानी घाट। यह भवसागर, इस पर घाट बनाने लगा। और कहा कि यहां से तुम भी अपनी नाव छोड़ो। हम तो पहुंच गए बिना घाट के–लेकिन बिना घाट के नाव छोड़ना सदा खतरनाक होता है-हम तो बिना घाट के भी तर गए किसी तरह, लेकिन अब तुम्हारे लिए सीढ़ियां डालकर, ठीक से पाटकर घाट बना देते हैं, अब तुम अपनी नाव को यहां से ले जाओ। तो इसको कहते हैं तीर्थंकर, जो दूसरों के लिए घाट बनाता। ___बौद्धों ने भी दो शब्द उपयोग किए हैं। एक को कहते-अर्हत। अर्हत का अर्थ होता है, जिसने पा लिया, जिसके सारे शत्रु समाप्त हो गए-अरिहंत, या अर्हत। अपने शत्रुओं को जीत चुका और फिर चुप्पी मारकर बैठ गया। दूसरे को कहते हैं-बोधिसत्व। जो ज्ञान को पा लिया और अब बांटने निकल पड़ा। अब वह कहता है, जो मिला है वह बांट भी दं। अपनी बात तो परी हो गयी. जो जानना था जान लिया, लेकिन बहुत हैं अभी जिनको इसका कुछ पता नहीं है, उनको जगाने चल पड़ा। दोनों बातें महत्वपूर्ण हैं, जब शुरू-शुरू में ध्यान की किरण उतरे तो कबीर की सुनना; वह साधक के लिए बात है। और जब किरण उतर जाए, सूरज ऊग जाए, फिर कबीर की बात मत सनना; फिर तो जहां कोई मिल जाए, माने चाहे न माने, चाहे देखे चाहे न देखे, तुम पट से अपनी गांठ खोलकर उसको हीरा तो दिखा ही देना! वह चाहे इंकार करे, चाहे वह लाख चिल्लाए कि क्षमा करो, मुझे नहीं देखना, कि मैं फिर देखूगा, अभी मेरा समय नहीं है, अभी मैं बाजार जा रहा हूं, मेरी पत्नी बीमार है, तुम कहना कि कोई फिकर नहीं, मगर देख तो लो, फिर मिलना हो न मिलना हो! मगर तुम्हें याद रह जाएगी कि हीरा होता है, हीरा घटता है। और मुझ जैसे साधारण आदमी को घट गया, तुम्हें भी घट सकता है।
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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