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एस धम्मो सनंतनो
जल्दी बताने की। होता है मन बताने का, कि कह दें किसी को कि ऐसा हुआ।
तुमने कभी खयाल किया? जो लोग ध्यान कर रहे हैं ठीक से, उनको कई बार अनुभव में आएगा, खूब रस आ रहा था ध्यान में और तुमने किसी से कहा और फिर दूसरे दिन रस नहीं आता-पक्षी उड़ गया। कहने में ही भूल हो गयी। तुमने कहकर जो मजा ले लिया, उससे अहंकार थोड़ा मजबूत हो गया। तुमने किसी को कहा कि ध्यान में गजब का अनुभव हुआ, कि कुंडलिनी जगी, कि रोशनी उठी, कि तीसरी आंख खुलती हुई मालूम पड़ी!
तुम जब कह रहे थे, तब तुम्हें खयाल भी नहीं था, तुम तो सिर्फ आंदोलित थे, आनंदित थे। तुमने कह दिया, पत्नी को कह दिया, पति को कह दिया, मित्र को कह दिया, सोचा भी नहीं था, लेकिन कहते-कहते तुम्हारे भीतर अहंकार निर्मित हो गया। तुम्हें एक अकड़ आ गयी कि देखो, एक हम एक तुम! कहां पड़े कूड़े-कचरे में! अभी तक संसार में ही उलझे हो! ऐसा तुमने कहा भी न हो ऊपर से, लेकिन ऐसी एक लहर भीतर दौड़ गयी कि अभी तक पड़े हो गंदगी में! एक हम देखो, एक तुम! जरा हमारी तरफ देखो! एक पवित्रता का भाव आ गया कि हम कुछ संत हो गए। ___ बस, उसी भाव में गड़बड़ हो गयी। दूसरे दिन ध्यान करने बैठोगे, न कुंडलिनी जगती, न रोशनी आती है, न तीसरी आंख का कोई पता चलता है, तुम बड़े हैरान होते हो कि बात क्या हो गयी! बहुत कोशिश करते हो, चेष्टा करते हो और छूट-छूट जाती है बात। कबीर ने उनके लिए कहा है-हीरा पायो गांठ गठियायो, वाको बार-बार क्यूं खोले।
लेकिन जब हीरा पक गया-हीरा पक गया इसका अर्थ होता है, जब अहंकार के पैदा होने की कोई संभावना ही न रही। कि अब सारी दुनिया आ जाए और इस हीरे को देख ले तो भी तुम्हारे भीतर कोई अस्मिता निर्मित नहीं होती; क्योंकि तुम जानते हो कि यह हीरा सबके भीतर पड़ा है, यह कोई विशिष्टता की बात नहीं है।
बुद्ध ने कहा है, जिस दिन मैं ज्ञान को उपलब्ध हुआ, मेरे लिए सारा संसार ज्ञान को उपलब्ध हो गया। यह बड़ी अनूठी बात कही है। इसे मैं अपने अनुभव से गवाही भी देता हूं कि यह बात सच है। यह मैं भी तुमसे कहता हूं कि जिस दिन मैंने जाना, उस दिन मैंने यह भी जान लिया कि सब जान चुके। क्योंकि जिस दिन पाया जाता है, उस दिन पता चलता है, सबके भीतर यह हीरा पड़ा है। तुम्हें पता न हो, यह दूसरी बात, लेकिन हीरा तो पड़ा ही है। तुम्हें न दिखता हो, मुझे तो दिखता है। जिसे अपना हीरा दिख गया, उसे सबके भीतर के हीरे दिखायी पड़ गए। जिसकी आंखें रोशनी देखने में समर्थ हो गयीं, उसकी आंखें सबकी रोशनी देखने में समर्थ हो गयीं।
बुद्ध का यह वचन महत्वपूर्ण है कि जिस दिन मैं ज्ञान को उपलब्ध हुआ, मेरे लिए सारा जगत ज्ञान को उपलब्ध हो गया। उस दिन के बाद कोई अज्ञानी है ही नहीं।
तो फिर बुद्ध समझाते क्या हैं? बुद्ध को कोई पूछता है कि अगर ऐसा है कि
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