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________________ आत्मबोध ही एकमात्र स्वास्थ्य पहले तो शून्य घटता है, शून्य में अनुभव होता है, फिर अनुभव शब्द बनकर बिखरना चाहता है, बंटना चाहता है। जो बुद्धत्व को उपलब्ध व्यक्ति अभिव्यक्ति देता है, वही सदगुरु हो जाता है। बहुत से लोग अर्हत हो जाते हैं। उन्होंने पा लिया सत्य को, फिर गुपचुप मारकर बैठ जाते हैं, चुप हो जाते हैं। कबीर ने कहा न-हीरा पायो गांठ गठियायो, वाको बार-बार क्यूं खोले। अब हीरा मिल गया, जल्दी से गांठ बांधकर चुप्पी साधकर बैठ गए, अब उसको बार-बार क्या खोलना है! ठीक है, यह बात भी ठीक है, किसी को ऐसा लगता है तो वह ऐसा करेगा। लेकिन बुद्धपुरुष उसे बार-बार खोलते हैं-सुबह खोलते, दोपहर खोलते, सांझ खोलते, जो आया उसी को खोलकर बताते, हीरा पायो, उसको गांठ नहीं गठिया लेते, कहते हैं कि देख भई, यह हीरा मिल गया; तुझे भी मिल सकता है। हालांकि यह हीरा ऐसा है कि कोई किसी को दे नहीं सकता, नहीं तो बुद्धपुरुष इसको दे भी दें। यह हीरा ऐसा है कि इसका हस्तांतरण नहीं हो सकता। यह अगर बुद्धपुरुष दे भी दें तो तुम्हारे हाथ में जाकर कोयला हो जाएगा। ___ तुम्हें पता है? कोयला और हीरा एक ही तरह के रासायनिक द्रव्यों से बनते हैं। कोयले और हीरे में कोई रासायनिक भेद नहीं है। कोयला ही लाखों साल तक जमीन के दबाव के नीचे पड़ा-पड़ा हीरा हो जाता है-कोयला ही। आज नहीं कल वैज्ञानिक विधि खोज लेंगे कोयले पर इतना दबाव डालने की कि जो बात लाखों साल में घटती है, वह क्षणभर में दबाव के भीतर हो जाए, तो कोयला हीरा हो जाएगा। और अगर हीरे पर से जो लाखों साल में दबाव पड़ा है, उसे निकालने का कोई उपाय हो, तो तत्क्षण हीरा कोयला हो जाएगा। तो कोयला और हीरा अलग-अलग नहीं हैं। बुद्धपुरुषों ने जन्मों-जन्मों में जो खोजा है, जो दबाव डाला है कोयले पर, उसके कारण वह हीरा हो गया है। वह हीरा उनके हाथ में ही हीरा है। जैसे ही तुम्हारे हाथ में गया, दबाव निकल जाता है—तुम्हारा तो कोई दबाव है नहीं-वह कोयला हो जाता है। इसलिए इस हीरे को दिया तो जा नहीं सकता, लेकिन दिखाया तो जा सकता है: तुम्हें बताया तो जा सकता है कि ऐसा होता है, यह है, देख लो, यह तुम्हारे भीतर भी हो सकता है! एक दिन मेरे भीतर भी नहीं था, मैं भी कोयले को ही ढोता रहा, लेकिन फिर यह अपूर्व घटना घटी, यह चमत्कार हुआ, यह तुम्हारे भीतर भी हो सकता है। जैसे मेरे भीतर हुआ, वह विधि मैं तुमसे कह देता हूं। तो सदगुरु तो उस गांठ को खोलता रहेगा। कबीर ने दूसरे अर्थ में कहा है। उन्होंने कहा है साधक के लिए, शुरू-शुरू में ऐसा नहीं करना चाहिए। कबीर का मतलब यह है कि जब शुरू-शुरू में ध्यान लगना शुरू हो, तो जल्दी-जल्दी खोल-खोलकर गांठ मत दिखाना, नहीं तो उड़ जाए पक्षी। शुरू-शुरू में मत करना 55 .
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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