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________________ एस धम्मो सनंतनो अनुसरण। समझो क्या हुआ है, तो तुम्हें कैसे होगा? फिर एक-एक कदम उस दिशा में उठाओ। तुम्हारे भीतर का दीया जल जाए, ठीक जैसा बुद्ध के भीतर जला है, तो अनुसरण। और तुमने एक तस्वीर बना ली कागज पर और तस्वीर छाती से लगाकर रख ली, तो अनुकरण। विरोध दोनों बातों में नहीं है। जब बुद्ध कहते हैं, अनुगमन करो, और कहते हैं, आत्म दीपो भव, अपने दीए खुद हो जाओ, तो इनमें कोई विरोध नहीं है। यही तो मार्ग है आत्मदीप को जलाने का कि किसी जले हुए दीप की जीवन-व्यवस्था को समझ लो, उसकी जीवन-शैली को समझ लो। कैसे उसका दीया जला है, कैसे दो पत्थरों को टकराकर उसने अग्नि पैदा की है, कैसे भीतर के तेल को जन्माया है, कैसे ज्योति जलायी है, कैसी बाती बनायी है, उसको ठीक से समझ लो उसकी प्रक्रिया को, उसके विज्ञान को पूरा समझ लो। वह विज्ञान तुम्हारे पकड़ में आ जाए, वह सूत्रं तुम्हारे पकड़ में आ जाए, तो अनुसरण। उस सूत्र की तो तुम चिंता ही न करो...यहां हो जाता है, अभी रामप्रिया को हो गया है—एक इटालियन साधिका है। भली है, सीधी है, जानकर भी नहीं हुआ है, अजाने हो गया है, अचेतन में हो गया है। अब वह कहती है कि जो मैं खाता हूं वही वह खाएगी। अगर मैं कमरे में रहता हूं दिनभर तो वह भी कमरे से बाहर नहीं निकलती अब। मैंने उसे बुलाकर कहा कि पागल, ऐसे न होगा। ऐसे तू पागल हो जाएगी। क्योंकि तू कमरे में तो बैठी रहेगी, लेकिन तेरा मन थोड़े ही इससे बदल जाएगा। तेरा मन तो घूमेगा, वह पागलपन जो थोड़ा बाहर निकलकर निकल जाता था वह निकल न पाएगा, तू पगला जाएगी–वह पगला रही है, मगर सुनती नहीं। वह सोचती है कि जैसा मैं करता हूं, ठीक वही उसे करना है। वही भोजन लेना है, उसी वक्त सोना है, उसी वक्त उठना है, उतनी ही देर कमरे में रहना है, न किसी से मिलना है न जुलना है, वह पागल हो जाएगी। उसे खींचने की कोशिश में लगा हूं कि वह बाहर निकले, क्योंकि इससे कुछ भी सार नहीं है। ___यह हुआ अनुकरण। यह अनुसरण न हुआ। भीतर जाओ-कमरे में जाने से न होगा, भीतर जाने से होगा। जरूर एक दिन तुम्हारे भोजन में भी अंतर आएगा, क्योंकि जब तुम्हारी चित्तदशा बदलेगी तो तुम वही भोजन न कर सकोगे जो तुम कल तक करते रहे थे। कल तक अगर तुम मुर्गियां फटकारते रहे, तो नहीं फटकार सकोगे उतनी आसानी से, मुश्किल हो जाएगा। शराब पीते रहे, तो पीना मुश्किल हो जाएगी। यह बात सच है। तुम्हारा भोजन भी बदलेगा। लेकिन भोजन बदलने से तुम्हारी चेतना न बदलेगी। चेतना बदलने से भोजन बदलेगा। और जिस दिन तुम शांत हो जाओ, फिर तुम्हारी मर्जी, कमरे में बैठना तो, बाहर बैठना तो, जहां बैठोगे अकेले ही रहोगे, कोई फर्क न पड़ेगा। तुम्हारे एकांत को फिर कोई भी न छीन 52
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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