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आत्मबोध ही एकमात्र स्वास्थ्य
अनुकरण के लिए नहीं कह रहे हैं बुद्ध, अनुगमन के लिए कह रहे हैं। अनुकरण का अर्थ होता है, जैसे बुद्ध उठते हैं, वैसे तुम उठो; जैसे बुद्ध बैठते हैं, वैसे तुम बैठो; जो बुद्ध खाते हैं, वह तुम खाओ; जो बुद्ध पीते हैं, वह तुम पीओ; यह अनुकरण। यह थोथा। इससे तुम बुद्ध जैसे दिखायी पड़ने लगोगे, लेकिन रहोगे बुद्ध के बुद्धू । नाटक हो जाएगा, हाथ सार न आएगा ।
बुद्ध जैसे कपड़े पहन लो, बुद्ध जैसे चलने लगो, इसमें कोई बड़ी अड़चन तो नहीं है। थोड़ा सा अभ्यास चाहिए, ठीक बुद्ध जैसे बोलने लगो, बुद्ध जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं, तुम भी करो, यह सब किया जा सकता है। यही लोग करते रहे सदियों से । यह अनुकरण, यह नकल । तुम कार्बन कापी हो गए। अप्प दीपो भव तुम न हो सके। तुम अपने दीए खुद न बन सके। तुमने बुद्ध के दीए का एक चित्र बना लिया, चित्र को छाती से लगाकर चलने लगे।
दीए के चित्र से रोशनी नहीं होती, खयाल रखना । अंधेरा जब पड़ेगा तब तड़फोगे, क्योंकि वह दीए का चित्र रोशनी नहीं करेगा। अनुकरण थोथा है, ऊपर-ऊपर है। सतही है।
अनुसरण बड़ी और बात है । अनुसरण का अर्थ है, बुद्ध को गौर से देखो, बुद्ध के भीतर गहरे झांको, बुद्ध को खिड़की बना लो, उनके भीतर गहरे झांको, जहां उनका दीया जल रहा है, वह कैसे जला है? दीए का चित्र मत बनाओ, वह दीया कैसे जला है बुद्ध के भीतर ? ऊपर-ऊपर की बातों को मत दोहराओ । कैसे बुद्ध चलते हैं, क्या फर्क पड़ता है।
ऐसा अक्सर होता है, यहां हो जाता है। मेरे पास जो लोग काफी दिन रहते हैं, वे ठीक वैसे ही उठने-बैठने-चलने लगेंगे। वे सोचते हैं कि कोई बहुत भारी बात हो रही है। कभी-कभी जानकर भी करते हैं, कभी-कभी अनजाने भी होता है। ऐसा भी नहीं कि वे जानकर ही करते हों, बहुत दिन पास रहेंगे तो संक्रामक हो जाते हैं। बात पकड़ ली ऊपर-ऊपर से, चलने लगे, उठने लगे, उसी ढंग से बात करने लगे जैसा मैं बोलता हूं-बोलते समय जैसा मेरा हाथ कुछ इशारे करता है, तो वे भी इशारे करने लगे। वे सोचते हैं कि यह तो बात हो गयी !
हाथ में कुछ भी नहीं है, हाथ के इशारे में कुछ भी नहीं है । इसको तुम सीख लो, तो भी कुछ न होगा। कहीं भीतर, जहां से यह इशारा आ रहा है, उस स्रोत को पकड़ो। अनुसरण का अर्थ है, बुद्ध का बुद्धत्व जहां से पैदा हो रहा है, जहां से ये किरणें आ रही हैं, उस मूलस्रोत में तुम भी उतरो । कैसे बुद्ध को यह दशा उत्पन्न हुई है, कैसे! उस उपचार से तुम भी गुजरो । वही समाधि, वही ध्यान । ऊपर का आचरण नहीं, अंतस बुद्ध का तुम्हारे भीतर भी निर्मित हो ।
यही मैंने तुमसे कहा कि मेरे शब्दों से प्रभावित मत होओ, मुझसे । और जब मैं कह रहा हूं, मुझसे, तो खयाल रखना, अनुकरण करने को नहीं कह रहा हूं,
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