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________________ आत्मबोध ही एकमात्र स्वास्थ्य जाता है-रो लेती, धो लेती, पीड़ा में तड़फ लेती, सब तरह के विषाद से भर जाती, फिर हल्की हो जाती। स्त्री का तन कष्ट पाता है, पुरुष का मन कष्ट पाता है। और कष्ट तो जारी रहेगा, जब तक आत्मा से जोड़ न हो जाए। फिर पुरुष का कष्ट हो, स्त्री का कष्ट हो, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता-बराबर हैं दोनों। ___ तो जैसे-जैसे तुम तन और मन से अपने को तोड़ते चलो, वैसे-वैसे स्वस्थ होते चलो। आत्मा में डूब जाना ही स्वस्थ होने का उपाय है। चौथा प्रश्न: आपके मौलिक विचारों से मैं बहुत प्रभावित हूं। यह तो प्रश्न न हुआ, प्रशंसा हुई। और प्रशंसा की कोई जरूरत नहीं है। -प्रश्न हों तो पूछे, प्रशंसा हो तो मन में रख लें। उससे सार भी क्या? उसकी बात करने से होगा भी क्या? तो पहली तो बात, कुछ ऐसी ही बात पूछे जो तुम्हारे लाभ की हो, जो तुम्हारे जीवन में कल्याणकारी हो, मंगलदायी हो। दूसरी बात, मौलिक विचार होते ही कहां! हो कैसे सकते हैं! इस जगत में कुछ भी मौलिक हो कैसे सकता है! कितने-कितने अनंत लोग हो चुके। कितने-कितने अनंतकाल से मनुष्य ने सोचा है, विचारा है। क्या तुम सोचते हो, एकाध ऐसा विचार रह गया हो जो किसी मनुष्य ने न सोचा हो पहले? असंभव है। __ लेकिन, सोचे गए विचार बार-बार खो जाते हैं। जब तुम उन्हें दुबारा सोचते हो तो ऐसा लगता है, वे मौलिक हैं। भूल जाते हैं, स्मृतियां खो जाती हैं। अब हमारे पास वेद तो है, वेद पांच हजार साल पुराना है, लेकिन पांच हजार साल पहले भी लोग सोच रहे थे, उसकी हमारे पास कोई संगृहीत किताब नहीं रह गयी। कुछ ऐसा थोड़े ही है कि वेद के पहले लोग सोच ही नहीं रहे थे, कि बिना सोचे बैठे थे-अगर बिना सोचे बैठे होते तो सब बुद्ध हो गए होते-सोच रहे थे, विचार रहे थे, खोज रहे थे। उन्होंने भी खूब सोचा होगा। फिर यह भी खयाल रखना कि बहुत थोड़े से लोग जो सोचते हैं उसे लिखते हैं। सोचते तो सभी लोग हैं, लिखते बहुत थोड़े से लोग हैं। जो लिखा हुआ है, उसमें से भी सब बचता नहीं, समय की धार में खो जाता है। फिर जो बचता है, समय के अनुसार रोज-रोज भाषा बदल जाती है, वह हमारी पकड़ में भी नहीं आता है। फिर जब दुबारा कोई आदमी आधुनिक भाषा में उसी बात को कहता है, हमें लगता है, 47
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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