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आत्मबोध ही एकमात्र स्वास्थ्य
हैं तो वे इसी तरह की चर्चाएं हैं, बहुत शरीर से जुड़ी हैं, शरीर से बंधी हैं।
तो इस कारण अड़चन आती है। क्योंकि मासिक धर्म में शरीर बड़ी पीड़ा से गुजरता है और स्त्रियों का बहुत जोर शरीर से है कि हम शरीर हैं, इसलिए अड़चन होती है। अड़चन असली में मासिक धर्म के कारण नहीं हो रही है, शरीर के साथ जुड़े होने के कारण हो रही है।
तो अड़चन से बाहर होना हो तो धीरे-धीरे शरीर से अपना जोड़ कम करना चाहिए। यह बोध धीरे-धीरे लाना चाहिए कि मैं शरीर नहीं हूं। यह औषधि। खासकर मासिक धर्म के चार दिनों में तो निरंतर यह चिंतन और भाव करना चाहिए कि मैं शरीर नहीं हूं। बाकी समय भी यह चिंतन चलना चाहिए, यह भाव चलना चाहिए। यह भाव जितना घना होकर भीतर बैठ जाएगा कि मैं शरीर नहीं हूं-और इस भाव को घना करने के लिए जो-जो जरूरी हो, वह भी करना चाहिए। ___ इसलिए तो मैं कहता हूं, तुमने संन्यास ले लिया तो मैं कहता हूं, बस अब गैरिक वस्त्र पहनो, और बाकी सब रंग समाप्त हुए। अब इनका चिंतन न करना पड़ेगा, अब विचार न करना पड़ेगा। संन्यासी स्त्री का फायदा देखते हैं, जल्दी तैयार हो जाती है। कुछ तैयार होने को ज्यादा है नहीं। वह एक ही रंग है, रंगों में कोई चुनाव नहीं करना है, बहुत साड़ियां नहीं हैं।
स्त्रियां मेरे पास संन्यास लेने आती हैं, पुरुष लेने आते हैं, उनके रुकने के कारण अलग होते हैं। एक स्त्री ने कहा कि कैसे संन्यास लूं, तीन सौ साड़ियां हैं, इनका क्या होगा? किसी पुरुष ने अब तक मुझसे नहीं कहा कि इतने कपड़े हैं, इनका क्या होगा? उसका कारण दूसरा होता है। वह कुछ और कारण बताता है। लेकिन स्त्री का कारण सीधा-साफ है कि उसके पास तीन सौ साड़ियां हैं, ये सब बेकार चली जाएंगी अगर संन्यास ले लिया तो। फिर इनका क्या होगा? स्त्रियां मुझसे पूछती हैं, संन्यास लेने के बाद गहने इत्यादि पहन सकते कि नहीं? __तो जिन-जिन बातों से शरीर का तादात्म्य बढ़ता है-वस्त्र हैं, गहने हैं, सजावट है-उनको धीरे-धीरे विसर्जित कर दो। और तुम पाओगे कि मासिक धर्म का जितना प्रभाव था, वह उसी मात्रा में कम होने लगा जिस मात्रा में शरीर से जोड़ हटने लगा। शरीर के साथ अपने को थोड़ा शिथिल करो। शरीर के साथ जोड़कर अपने को मत देखो। शरीर से अपने को भिन्न देखो। और ऐसा कोई अवसर मत चूको जब शरीर से भिन्न देखने का मौका मिले, जरूर देख लो। दर्पण के सामने भी खड़े होकर यही खयाल करो कि यह शरीर मैं नहीं हूं। तो कोई हर्जा नहीं, तीन घंटे दर्पण के सामने खड़े होना है तो खड़े रहो, मगर यही खयाल करो कि यह शरीर मैं नहीं हूं। इस खयाल की गहराई के बढ़ने के साथ ही साथ मासिक धर्म की पीड़ा एकदम कम होती चली जाएगी।
और तब तुम चकित होकर पाओगी कि जैसे-जैसे मासिक धर्म की पीड़ा कम
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