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________________ एस धम्मो सनंतनो तो एक बात तो खयाल रखना, अगर बेचैनी की पूरी मात्रा खयाल में लो तो स्त्री-पुरुष में कोई भेद नहीं है, बेचैनी की मात्रा तो बराबर है। जैसे समझ लो कि सौ का आंकड़ा है, तो चार दिन में स्त्री सौ का आंकड़ा निकाल लेती है, और पुरुष को निकालने में तीस दिन लगते हैं। स्वभावतः रोज की मात्रा पुरुष पर कम पड़ती है, स्त्री की चार दिन में मात्रा बहुत हो जाती है। एक बात। दूसरा पहलू बहुत कम देखा गया है। स्त्रियां भी नहीं देखतीं कि दूसरा पहलू भी छिपा है। स्त्रियों का जो गीत है, स्त्रियों का जो सौंदर्य है, स्त्रियों की जो कोमलता है, स्त्रियों का जो प्रसाद है, वह कहां से आ रहा है? वह चार दिन में जो निकल गया जहर, तो फिर से एकदम हल्कापन हो गया, बोझ उतर गया। अगर यह दूसरी बात भी खयाल में रहे, तो चार दिन का बोझ बहुत बोझ नहीं मालूम पड़ेगा। उसका लाभ भी ध्यान में रखना जरूरी है, एक बात। दूसरी बात, मासिक धर्म के कारण उतनी गड़बड़ी नहीं हो रही है, जितनी गड़बड़ी होती है स्त्रियों के शरीर-तादात्म्य के कारण। स्त्रियां अपने को बहुत शरीर मानती हैं, इतना पुरुष नहीं मानता। पुरुष अपने को मन के साथ तादात्म्य करता है। स्त्री अपने को शरीर के साथ तादात्म्य करती है। इसलिए स्त्री की उत्सुकता शरीर में होती है, दर्पण के सामने खड़ी है घंटों! पुरुष को समझ में ही नहीं आता कि दर्पण के सामने अपनी ही सूरत घंटों देखने का क्या प्रयोजन है! घंटों वस्त्र सम्हाल रही है। ऐसा कोई मौका ही नहीं होता जब कि स्त्री समय पर कहीं पहुंच जाए, क्योंकि वह उसका बार-बार मन बदल जाता है कि दूसरी साड़ी पहन लूं, कि इस तरह कर लूं, कि उस तरह के बाल सजा लूं। पति हार्न बजा रहा है नीचे और वह तैयार ही नहीं हो पाती। हर तैयारी कम मालूम पड़ती है। स्त्री का शरीर-बोध बहुत प्रगाढ़ है। मनुष्य के भीतर तीन तत्व हैं-आत्मा, मन और शरीर। पुरुष का रोग मन से जुड़ा है, स्त्री का रोग शरीर से जुड़ा है। इसलिए पुरुष के झगड़े और ढंग के होते हैं। पुरुष का झगड़ा होता है सिद्धांत का, शास्त्र का, हिंदू का, मुसलमान का, राजनीति का; इस विचार का, उस विचार का, हम इस विचार को मानते, तुम उस विचार को मानते। स्त्री को समझ में नहीं आता कि क्या बकवास कर रहे हो! अरे, कुरान मानो कि बाइबिल मानो, कुछ भी मानो, रखा क्या है, सब बराबर है। असली सवाल तो शरीर है—सुंदर कौन है? कीमती साड़ी किसने पहनी है? बहुमूल्य हीरे-जवाहरात किसके पास हैं? यह बात सोचने जैसी है। ___ स्त्री इसमें बेचैन नहीं होती, जब एक दूसरी स्त्री उसके सामने से निकलती है, तो वह यह नहीं देखती कि यह हिंदू है कि मुसलमान है कि ईसाई है कि पारसी है, वह देखती है यह कि अच्छा, तो यह साड़ी इसने खरीद ली! तो ये गहने इसने बना लिए! तो मैं पिछड़ गयी! स्त्रियों की चर्चाएं सुनते हो? बैठकर जब वे चर्चाएं करती 44
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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