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________________ आत्मबोध ही एकमात्र स्वास्थ्य तीसरा प्रश्नः ऐसा कहा जाता है कि हम स्त्रियों के नब्बे प्रतिशत रोग मासिक धर्म की गड़बड़ी के कारण होते हैं और उन रोगों से मुक्त होने के लिए हम नाना प्रकार की औषधियों का उपयोग करती हैं, पर फिर भी स्वस्थ नहीं हो पातीं। आप परम वैद्य हैं, आप हमारे कष्टों और दुखों को भलीभांति जानते हैं, कृपा करके हमें मार्गदर्शन दें, हमें धर्म में गतिमान करें। क छ बातें समझ लेने जैसी हैं। पहली बात, यह बात सच है कि मासिक धर्म के कारण स्त्रियों को बहुत सी अड़चनें होती हैं, बहुत से रोग होते हैं। लेकिन दूसरी बात भी खयाल रखना, कि मासिक धर्म के कारण स्त्रियों को कुछ सुविधाएं हैं जो पुरुष को नहीं हैं। क्योंकि इस जगत में कांटे अकेले नहीं आते, फूलों के साथ आते हैं। न फूल अकेले आते हैं, फूल भी कांटों के साथ आते हैं। यहां हर कड़वाहट में कोई मिठास छिपी होती है। ___ तो यह बात सच है कि मासिक धर्म के कारण स्त्रियों को बहुत सी तकलीफें होती हैं। दूसरी बात भी इतनी ही सच है—जो खयाल में नहीं है कि मासिक धर्म के कारण स्त्रियों को कुछ सुविधाएं हैं जो पुरुष को नहीं हैं। जैसे समझो, मासिक धर्म के चार दिन, पांच दिन स्त्रियों के लिए बड़ी नकारात्मक दशा के दिन हैं। सारा चित्त निषेध से भर जाता है। रुग्ण हो जाता है, क्रोध से भर जाता है, विषाद से भर जाता है, जीवन बोझिल मालूम होता है। जैसे एक छोटी सी मौत घटने लगी। ऐसी तकलीफ पुरुष को नहीं आती। लेकिन तुम्हें पता नहीं, ये चार दिन में जो नकारात्मकता पैदा हो जाती है, वह बह भी जाती है चार दिन में और बाकी जो महीना है वह ज्यादा प्रफल्लता का होता है। वैसी प्रफल्लता पुरुष की नहीं होती। उसकी नकारात्मकता निकलने में तीस ही दिन लगते हैं। थोड़ी-थोड़ी निकलती है, इकट्ठी नहीं निकलती। स्त्रियों का रोग इकट्ठा चार दिन में निकल जाता है। क्योंकि अंततः तो दोनों के रोग एक जैसे हैं, निकलना तो पड़ेगा ही। तो स्त्री चार दिन में थोक रूप से परेशान हो लेती है, पुरुष तीस दिन फुटकर रूप से परेशान रहता है। इसलिए पुरुष की पीड़ा कभी उतनी प्रगाढ़ नहीं दिखती जितनी स्त्री की दिखती है। लेकिन पुरुष की प्रफुल्लता भी उतनी प्रगाढ़ नहीं दिखती जितनी स्त्री की दिखती है। स्त्री की कोमलता, स्त्री का सौंदर्य, उसी मासिक धर्म के कारण है। वह जो मासिक धर्म सारे विषाद को, सारे जहर को बहा देता है, तो बाकी शेष महीने में स्त्री हल्की हो जाती है। पुरुष पूरे महीने उसी बेचैनी में रहता है। धीरे-धीरे करके उसकी बेचैनी निकलती है।
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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