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________________ एस धम्मो सनंतनो लेगा, उसकी अनुकंपा होगी तो उठा लेगा। और फिर सदा परमात्मा के साथ बैकुंठ में रहेंगे, मजा भोगेंगे, सुख ही सुख होगा, स्वर्ग होगा, अप्सराएं होंगी, कल्पवृक्ष होंगे, उनके नीचे बैठकर सारी-सारी वासनाओं को तृप्त करेंगे। ___ यह साल्वेशन से थोड़े ऊपर जाता। कम से कम किसी मसीहा को तो बीच में नहीं लिया है। कम से कम आदमपुत्र को तो बीच में नहीं लिया है, सीधा ईश्वर है। चलो, इतना ही बहुत। यह थोड़ी ऊपर जाती धारणा। और, उसकी अनुकंपा से होगा। तो उसकी अनुकंपा अर्जित करनी होगी। उसकी अनुकंपा अर्जित करने के लिए हृदय को स्वच्छ करना होगा, प्रार्थनापूर्ण करना होगा, निर्मल करना होगा, यह भक्तों की धारणा है। __ लेकिन बैकुंठ में भी परमात्मा रहेगा, हम रहेंगे, अलग-अलग। दो रहेंगे। और जहां दो हैं, वहां व्रक अभी बात बहुत ऊपर नहीं गयी। क्योंकि जहां बात बहुत ऊपरं जाएगी वहां तो एक बचना चाहिए। जहां तक द्वंद्व है, द्वैत है, वहां तक मन का सब विकार है। क्योंकि मन ही चीजों को दो में तोड़ता है। जहां मन ही न रहा, वहां दो कैसे रहेंगे? __ इसलिए तीसरी धारणा है मोक्ष की। वेदांत, जैन-इनकी धारणा और ऊंची जाती है। मोक्ष का अर्थ है, दो न रहे, एक ही बचा। हिंदू उस एक को कहते, ब्रह्म। व्यक्ति की आत्मा, मनुष्य की आत्मा उसमें समा गयी, ब्रह्म में। हम खो गए। बूंद सागर में गिर गयी और सागर हो गयी। ब्रह्म बचा, ब्रह्ममात्र। यह हिंदुओं की धारणा, वेदांत की। जैनों की धारणा कि सागर बूंद में समा गया। परमात्मा हममें लीन हो गया। हम बचे, मैं बचा, आत्मा बची। हिंदुओं से जैनों की धारणा ऊपर जाती है। क्योंकि मैं समा गया, मैं खो गया, परमात्मा बचा, तो इसका अर्थ यह हुआ कि फिर मैं था ही नहीं, परमात्मा ही था। खो तो वही सकता है जो रहा ही न हो। मिट तो वही सकता है जो कभी रहा ही न हो, सिर्फ भास होता था जिसका। तो मनुष्य की गरिमा को चोट पहुंचती है। महावीर ने मनुष्य की गरिमा को चोट नहीं पहुंचने दी। उन्होंने कहा, मनुष्य की गरिमा को चोट जो धर्म पहुंचा दे, वह मनुष्य को गुलाम बना देगा। मनुष्य की गरिमा अपरिसीम है, आखिरी है। तो आत्मा ही परमात्मा हो जाती है। लीन नहीं होती परमात्मा में, परमात्मा बन जाती है। जैसे बूंद में सागर उतरता। बूंद का सागर में उतरना तो साधारण सी बात है, समझ में आ जाता है। लेकिन बूंद में सागर का उतरना बड़ी असाधारण घटना है। तो सिर्फ आत्मा बचती है मोक्ष में, शुद्ध आत्मा बचती है, निर्मल ज्योति बचती है चेतना की, कोई दूसरा नहीं। फिर निर्वाण है। निर्वाण बौद्धों की धारणा है। वह सबसे ऊपर की धारणा है। फिर उसके पार कोई धारणा कभी नहीं गयी है। निर्वाण का अर्थ है, न तो परमात्मा बचता है, न मैं बचता, कोई भी नहीं बचता-शून्य बचता है। क्योंकि बौद्ध कहते 40
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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