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________________ आत्मबोध ही एकमात्र स्वास्थ्य जीयूं! बाप ने यही कहा था कि तुझे जानने की जरूरत क्या, मैं सब जानता हूं; तू सिर्फ मेरी मान और चल । यही तो सभी बाप कहते हैं कि तुझे जानने की क्या जरूरत है, मैं तो सब जानता हूं, तू तो सिर्फ हमारी आज्ञा मान। लेकिन कौन बेटा ज्यादा देर तक इसके लिए राजी हो सकता है ! उन बेटों को छोड़ दो जो गोबर गणेश हैं। उनका कोई मतलब भी नहीं है, वे हैं भी नहीं । अदम ने जो पाप किया, करना ही था । जरूरी था, पाप था ही नहीं । अदम ने हिम्मत की जवान होने की। हर बेटे को करनी पड़ती है, एक दिन हर बेटे को, हर बेटी को अपने मां-बाप को इनकार करना पड़ता है। यह होना ही है । यह होना ही चाहिए। इसी से तो रीढ़ पैदा होती है। इसको ईसाई कहते हैं, पाप हो गया । यह भी खूब पाप हुआ ! और दूसरा मजा यह कि पाप किसी ने किया - जिसका हमें कोई लेना-देना नहीं—हम सब उसका पाप भोग रहे हैं, क्योंकि हम सब उसकी संतान हैं! यह भी अजीब बात हुई ! बाप पाप करे और बेटा भोगे । बाप के बाप पाप करें और बेटा भोगे। तो फिर व्यक्तिगत आत्मा का अर्थ ही न रहा । फिर व्यक्तिगत आत्मा का क्या मूल्य ! फिर तुम हो, यह कहने में क्या सार! तुम हो ही नहीं । हजारों साल पहले किसी आदमी ने कोई भूल-चूक की थी, उसका पाप तुम्हारी आत्मा पर गहरा है! तुमसे कुछ लेना-देना नहीं । जो तुमने भूल नहीं की, उसकी जिम्मेवारी तुम पर नहीं हो सकती। यह धारणा ही बुनियादी रूप से गलत। फिर इस गलत धारणा को ठीक करने के लिए दूसरी गलत धारणा पैदा करनी पड़ी कि जब पाप दूसरे का किया आदमी भोग रहा है, तो फिर पुण्य भी दूसरे का ही किया आदमी भोगेगा। तो सारा मजा कि कथा अदम से शुरू हुई, जीसस पर समाप्त हो गयी, हमें कुछ लेना-देना नहीं, हम सिर्फ दर्शक हैं। पाप अदम ने किया, जीसस ने क्षमा मांग ली। अदम ने आज्ञा तोड़ी थी, जीसस ने आज्ञा पूरी कर दी । अदम स्वर्ग के बाहर निकाल दिया गया था, जीसस जुलूस के साथ शोभा यात्रा में स्वर्ग में वापस प्रविष्ट हो गए। और हम ? अदम और जीसस को छोड़कर बाकी जो लोग हैं, ये ? ये सिर्फ दर्शक हैं! किसी का पाप ढोते हैं, किसी का पुण्य ढोने लगते हैं ! लेकिन इसका तो अर्थ हुआ कि तुम्हारे भीतर कोई आत्मा नहीं है 1 इसलिए मैं साल्वेशन को मोक्ष की सबसे निम्नतम धारणा कहता हूं, क्योंकि इसमें दूसरे पर भरोसा है। मोक्ष से थोड़े ऊपर जाता है हिंदुओं का बैकुंठ । थोड़े ऊपर जाता है। बहुत ऊपर नहीं जाता। बैकुंठ का अर्थ होता है, परमात्मा के प्रसाद से। कोई मनुष्य नहीं है माध्यम, लेकिन अभी भी दूसरा महत्वपूर्ण है, परमात्मा का प्रसाद ! परमात्मा चाहेगा तो उठा 39 .
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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