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________________ एस धम्मो सनंतनो ने किया, तो उसका पाप तुम भोग रहे थे । फिर आए जीसस, उन्होंने पुण्य किया, अब उनका पुण्य तुम भोग रहे हो। तुम उधार ही उधार हो ! नगद कुछ भी है तुम्हारे भीतर ? पाप भी अपना नहीं! पुण्य भी अपना नहीं ! यह बात बहुत गहरी नहीं है । अदम का पाप हमें क्यों पापी बनाएगा? अदम ने किया होगा, अदम समझे-बूझे ! इससे तो व्यक्तिगत आत्मा की हत्या ही हो गयी । अदम कब हुआ! हुआ कि नहीं हुआ ! पाप भी कोई बहुत बड़ा नहीं किया। पाप ऐसा किया जो करना ही था। ईश्वर ने कहा था कि इस बगीचे के ज्ञान के फल को मत चखना और अदम ने चखा। कोई भी आदमी जिसमें थोड़ी भी हिम्मत हो, यही करता । और फिर ज्ञान का फल ! छोड़ देने जैसा भी नहीं था । अदम ने जोखिम उठायी, उसने कहा, हो पाप हो ! कारण क्या रहा होगा ? अगर हम अदम के मनोविज्ञान में उतरें तो हमें समझ में आएगा। अदम ऊब गया था, सुख ही सुख, सुख ही सुख । मिठाई ही मिठाई, मिठाई ही मिठाई, तो डायाबिटीज पैदा हो जाती है। तो अदम को डायबिटीज हो गयी होगी । सुख ही सुख था वहां, दुख तो था ही नहीं कुछ मोक्ष में, उस ईश्वर के राज्य में; सब सुख ही सुख था, पीड़ा तो कुछ थी ही नहीं । ऊब गया होगा । थक गया होगा। जितना आदमी सुख से थक जाता है उतना किसी और चीज से नहीं थकता । कुछ करने का जी होने लगा होगा । कुछ नए का स्वाद लेने का मन उठने लगा होगा । तो उसने जोखिम उठायी। वह ऊबा हुआ था, उसने कहा कि ठीक है, ज्यादा से ज्यादा इस स्वर्ग के बाहर ही निकाल दोगे न ! इस स्वर्ग में रखा भी क्या है ! यह स्वर्ग एक तरह की गुलामी थी। जहां ज्ञान का फल खाने की भी आज्ञा न हो, वह स्वर्ग क्या और क्या आज्ञा दोगे, जहां ज्ञान का फल खाने की भी आज्ञा नहीं है ! तो अदम राजी हो गया, उसने ज्ञान का फल खा लिया और स्वर्ग से निकाल दिया गया। क्योंकि ईश्वर बहुत नाराज हो गया - उसकी आज्ञा का उल्लंघन हुआ । यह ईश्वर न हुआ साधारण बाप हुआ, यह छोटी-मोटी आज्ञाओं के उल्लंघन से एकदम दीवाना हो जाता है। अगर बाप भी थोड़ा हिम्मतवर होता तो पीठ ठोंकता अदम की कि तूने ठीक किया बेटा, अब तू जवान हुआ । बाप को इनकार करके ही तो बेटा जवान होता है। जब तक बेटा बाप को इनकार नहीं करता तब तक तो दुधमुंहा रहता है - तब तक जवान होता ही नहीं, दूध के दांत टूटे ही नहीं । जब तक बाप जो कहता है, हां में हां भरता है, तब तक कहीं कोई बेटा जवान होता है ! मनोविज्ञान से पूछो ! मनोवैज्ञानिक कहते हैं, जब बेटा नहीं कहता है बाप को, उसी दिन बेटा जवान होता है। तो अदम ने कुछ कसूर न किया, जवान हुआ । अदम को निकाल दिया, कसूर भी कोई बड़ा न था, सिर्फ अपनी प्रौढ़ता की घोषणा थी कि मैं अपनी जिंदगी अपने हाथ में लेना चाहता हूं। ज्ञान का फल खाने का मतलब क्या ? कि अब मैं उधार नहीं जीना चाहता; तुम जानो और मैं बिना जाने 38
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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