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________________ आत्मबोध ही एकमात्र स्वास्थ्य यात्राएं की, लेकिन अपने घर तुम कभी आए ही नहीं। अपने घर आ जाना यानी धर्म। एस धम्मो सनंतनो। यही सनातन धर्म है। दूसरा प्रश्न: क्या अंग्रेजी का शब्द साल्वेशन और संस्कृत के मोक्ष, बैकुंठ और निर्वाण, सब समानार्थी हैं? पर म अर्थों में, अंतिम अर्थों में, हां। प्राथमिक अर्थों में, नहीं। पारमार्थिक अर्थों में, हां। व्यावहारिक अर्थों में, नहीं। व्यावहारिक अर्थों में तो फर्क है। साल्वेशन का अर्थ होता है, किसी और के द्वारा। इसलिए ईसाई सोचते हैं, जीसस के द्वारा। स्वयं के द्वारा नहीं, किसी और के द्वारा कोई आएगा कल्याणकर्ता, कोई आएगा उद्धारक, मसीहा, उसके द्वारा मुक्ति होगी, तो साल्वेशन। ___ यह मोक्ष की सबसे निम्न धारणा है। क्योंकि दूसरे के द्वारा जो होगा, वह तो मोक्ष होगा कैसे? दूसरे में ही उलझे-उलझे तो संसार है, फिर भी उलझे दूसरे में ही हैं। पहले पत्नी में उलझे थे, पति में उलझे थे, बेटे में उलझे थे, अब इससे छूटे तो अब मसीहा आएगा, तो मुक्ति होगी। मुक्ति भी अपने हाथ में नहीं तो क्या खाक मुक्ति! जब मुक्ति भी दूसरे के हाथ में है, तो मुक्ति भी बंधन हो गयी। फिर मसीहा आज मुक्त कर देगा। और कल अगर मसीहा का दिल बदल गया! जो हाथ में दूसरे के है, वह तुम्हारा नहीं। वह तुम्हारी मालकियत नहीं। यह मोक्ष की सबसे निम्नतम धारणा है, कि दूसरा। यह संसार के बहुत करीब है। इसलिए ईसाइयत बहुत ऊपर नहीं उठी। ईसाइयत का धर्म संसार के बहुत करीब है। इसलिए ईसाई पादरी-पुरोहित बिलकुल सांसारिक है। उसमें कुछ धर्म की वैसी पारलौकिक गंध नहीं है, जैसी बौद्ध भिक्षु में दिखायी पड़ेगी, हिंदू संन्यासी में दिखायी पड़ेगी, जैन मनि में दिखायी पड़ेगी, वैसी गंध नहीं है। कुछ चूक रहा है। उसकी साल्वेशन की जो धारणा है, मुक्ति की जो धारणा है, वह भी बासी और उधार है-दूसरा कोई करेगा। तो बैठे हैं हाथ पर हाथ धरे। और जीसस आए और गए भी और ईसाई सोचते हैं, मुक्ति हो गयी, जीसस के आने से मुक्ति हो गयी। तो अब करने को कुछ बचा ही नहीं है! इसलिए यह मुक्ति की धारणा मुक्ति में सहयोगी तो नहीं बनी, बाधा बनी। अब तो करने को कुछ है नहीं! अब तुम समझो। ईसाइयत की धारणा यह है कि अदम के कारण पाप हुआ। तुमने पाप भी नहीं किया। हद्द हो गयी! तुम कुछ करोगे कभी कि नहीं! पाप भी अदम 37
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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